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________________ नदी तो बह रही है, अपने से ही गड़बड़ मत करो, तुम्हें ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं। यदि तुम सागर तक पहुंचना चाहते हो, तो तुम बस एक हिस्सा बन जाओ नदी का और नदी तुम्हें ले चलेगी। लेकिन मदद मत करना नदी की, वही तो करते रहे हो तुम। जीवन तो अपने से ही बह रहा है; किसी चीज की जरूरत नहीं पैदा होने के लिए तुमने क्या किया? यहां होने के लिए तुमने क्या किया? जीवित रहने के लिए तुमने क्या किया? क्या ऐसी कोई चीज है जो तुमने की है? यदि नहीं तो फिर क्यों करनी फिक्र? जीवन तो अपने से ही चलता जाता है। मूढ लोग दुख निर्मित कर लेते हैं, अवस्था ऐसी ही है। मैंने सुना है एक बार एक समृद्ध व्यक्ति, एक बड़ा राजा कहीं जा रहा था अपने रथ में बैठकर उसने देखा एक गरीब ग्रामीण, एक बूढ़ा आदमी सड़क के किनारे जा रहा था सिर पर एक बड़ा बोझ उठाए हुए, और बोझ बहुत ज्यादा था। राजा को दया आ गई। वह कहने लगा, तुम आओ, के बाबा, रथ में मेरे साथ बैठो। जहां कहीं तुम चाहते हो मैं तुम्हें वहां छोड़ दूंगा' का आदमी रथ में आ गया, लेकिन अपना बोझ अभी भी सिर पर लिए हुए था। राजा बोला, 'क्या तुम पागल हुए हो? तुम अपना बोझ नीचे क्यों नहीं रख देते?' वह आदमी बोला, 'मैं रथ में हूं और यही बहुत ज्यादा बोझ है रथ के लिए और घोड़ों के लिए। मेरा बोझ ही बहुत ज्यादा होगा। धन्यवाद महाराज, अब यह बोझ तो मुझे ही उठाने दो। यह तो बहुत ज्यादा होगा घोड़ों के लिए और रथ के लिए।' चाहे तुम अपना बोझ अपने सिर पर उठाओ या कि तुम उसे रख दो रथ में घोड़ों के लिए सब बराबर होता है, उन्हें सब कुछ लिए चलना होता है। जीवन स्वयं ही चल रहा है, तुम अपने बोझ क्यों नहीं छोड़ देते जीवन पर? बल्कि तुम तो चिपके रहते हो। और जब तुम चिपके रहते हो जीवन से तो मृत्यु - भय उठ खड़ा होता है। वरना तो कोई मृत्यु नहीं और भय नहीं। जीवन अनंत है। कोई मरता नहीं है कभी कोई मर नहीं सकता है कभी जो कुछ अस्तित्व में रहता है वह अस्तित्व रखेगा, वह सदा रहा ही है अस्तित्व में, वह जा नहीं सकता है अस्तित्व के बाहर । कोई चीज जा नहीं सकती है अस्तित्व के बाहर, कुछ बाहर नहीं जा सकता, कुछ भीतर नहीं आ सकता । अस्तित्व समग्र होता है। हर चीज बनी रहती है- भाव- दशाएं बदलती, आकार बदलते, नाम बदलते। यही है जिसे हिंदू कहते हैं नामरूप रूपाकार और नाम बदल जाते हैं, वरना तो हर कोई बना रहता है, हर चीज बनी रहती है। तुम यहां आए हो लाखों बार तुम यहां होओगे लाखों बार तुम यहां रहोगे सदा ही। जीवन है सदा के लिए। निस्संदेह तुम्हारा नाम यही नहीं होगा। तुम्हारा यही चेहरा फिर नहीं हो सकता। शायद फिर तुम्हारे पास पुरुष या स्त्री की देह न हो, लेकिन उससे कुछ लेना-देना नहीं है, वह बात अप्रासंगिक है। तुम यहां होओगे जैसे कि लहरें होतीं समुद्र में वे आती और जातीं, वे जात और आती रूप बदलते, लेकिन उसी सागर में लहरें उठती - उमड़ती रहतीं। ,
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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