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________________ उदघटित घटना होती है एक बोध अचानक तुम हैरान हो जाते हो! तुम अनुपस्थित हो और परमात्मा मौजूद है। तुम्हारी अनुपस्थिति में परमात्मा है, तुम्हारी उपस्थिति में केवल दुख मौजूद होता है। तुम्हारी उपस्थिति से कुछ संभव नहीं होता, तुम्हारी अनुपस्थिति में सारी अपरिसीमितता संभव हो जाती है। ये अंतर्संबंधित बातें होती हैं : सहज - संयम, स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण। क्रियायोग का अभ्यास क्लेश को घटा देता है और समाधि की ओर ले जाता है। ये तीन चरण दुख घटाते हैं और तुम्हें समाधि की ओर ले जाते हैं, परम की ओर, जिसके बाद कोई चीज अस्तित्व नहीं रखती है। जब तुम परमात्मा के प्रति समर्पित होते हो, परमात्मा हो जाते हो; वही होती है समाधि। दुख उत्पन्न होने के कारण हैं : जागरूकता की कमी अहंकार मोह घृणा जीवन से चिपके रहना और मृत्यु- भय । वस्तुतः केवल अहंकार ही होता है कारण। बाकी सब बातें जो पीछे-पीछे आती हैं, वे तो मात्र परछाइयां होती हैं अहंकार की आत्म जागरूकता की कमी अहंकार है। तुम अनुभव करते हो कि तुम हो। क्योंकि तुम जानते नहीं। तुम अंधकार में होते हो। तुम स्वयं से कभी मिले ही नहीं; और तुम सोचते हो कि 'तुम हो।' यह बात सब प्रकार के दुख निर्मित करती है। । 1 ...अहंकार, उन चीजों के प्रति आकर्षण है जो व्यर्थ होती हैं, द्वेष, घृणा – जो कि मोह का, आकर्षण का दूसरा छोर है-जीवन से चिपकना और मृत्यु भय ।' तुम जीवन से चिपकते हो क्योंकि तुम जानते नहीं कि जीवन क्या है। यदि तुम जानते, तो कोई चिपकना होता ही नहीं; क्योंकि जीवन शाश्वत है क्यों चिपकना? वह चलता जा रहा है और वह कभी ठहर सकता नहीं। तुम चिपकते जाकर अनावश्यक रूप से स्वयं को तकलीफ देते हो। यह ऐसे है जैसे कि एक नदी बह रही होती है और तुम नदी को धकेल रहे होते हो समुद्र की ओर -जब कि वह बह रही होती है अपने से ही। तुम्हें धकेलने की जरा भी जरूरत नहीं। तुम बेकार ही स्वयं के लिए दुख खड़ा कर लोगे। तुम सोचोगे कि तुम एक बहादुर शहीद हो क्योंकि तुम धकेल रहे हो नदी को और ले जा रहे हो उसे सागर की ओर !
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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