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________________ रहने की बात। यह होता है एक मार्ग। तिलोपा संबंधित है दूसरे मार्ग से, स्वच्छंद और स्वाभाविक होने का मार्ग और जागरूकता की फिक्र तक न लेने का मार्ग; बस वही हो जाना जो कुछ तुम हो, किसी संशोधन के लिये कोई प्रयास न करते हुए। और मैं कहता हूं तुमसे, तिलोपा का दृष्टिकोण ज्यादा ऊंचा है बुद्ध से, गुरजिएफ से और कृष्णमूर्ति से, क्योंकि वे कोई अंतर्विरोध निर्मित नहीं करते हैं। वे तो सहज ही कहते हैं कि, 'बस, वही हो जाओ जो कुछ तुम हो। 'किसी आध्यात्मिक प्रयास की भी जरूरत नहीं क्योंकि वह भी अहंकार का ही हिस्सा है-कौन प्रयास कर रहा होता है सुधरने का? कौन कर रहा होता है प्रयास जागरूक होने का? कौन प्रयास कर रहा होता है संबोधि को उपलब्ध होने का? यह कौन होता है तुम्हारे भीतर? यह है फिर वही अहंकार। वही अहंकार जो प्रयास कर रहा था देश का राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री होने के लिये, अब वह प्रयास कर रहा होता है बुद्धत्व को उपलब्ध होने के लिये। बुद्ध ने स्वयं संबोधि को कहा है, 'अंतिम दुखस्वप्न'। संबोधि अंतिम दुखस्वप्न है क्योंकि फिर, यह एक स्वप्न ही है। और न ही यह केवल स्वप्न है, बल्कि एक दुखस्वप्न है। क्योंकि तुम इसके द्वारा दुखी होते हो। तिलोपा का दृष्टिकोण परम दृष्टिकोण है। यदि तुम इसे समझ सको, तो किसी तरह के किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती। तुम तो केवल विश्रांत रही और जीवंत रहो, और हर चीज अपने से ही पीछे चली आती है। व्यक्ति को होना होता है केवल प्रयासहीन; बस शात रूप से बैठना; बसंत ऋतु आती है और घास बढती है स्वयं ही। दूसरा प्रश्न : ऐसा समझा गया है अतीत में योग की बहुत प्रणालियां मुख्य रूप से दमन द्वारा ही सिखाई गयी हैं और बिलकुल थोड़े लोग ही इसके द्वारा उपलब्ध भी हुए। क्या यह संभव नहीं कि आज भी दमन की यह विधि शायद एक निश्चित प्रकार के व्यक्ति के अनुकूल पड़ती हो? पहली तो बात कि यह बिलकुल ही गलत है; जो जानते हैं उनमें से किसी ने कभी दमन नहीं सिखाया। दूसरी बात, कोई कभी इसके द्वारा उपलब्ध न किन हर कहीं खोटे सिक्के विद्यमान हैं। स्वाभाविक होने का मार्ग बहुत सीधा-सरल है। लेकिन तुम्हें यह कठिन दिखता है, क्योंकि अहंकार चाहता है संघर्ष करने के लिये, चुनौती पाने के लिये, विजय पाने के लिये कोई कठिन बात। अहंकार जीवित रहता है निरंतर चुनौती द्वारा। अगर कोई चीज बिलकुल सीधी होती है, तो अहंकार नीचे गिर
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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