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________________ स्वच्छंद और स्वाभाविक हो जाओगे। वे दोनों बातें साथ-साथ बनी रहती हैं। लेकिन यदि तुम कोशिश करते हो दोनों के लिये, तो तम अंतर्विरोध निर्मित कर लोगे। दोनों के लिये एक साथ प्रयत्न करने की कोई जरूरत नहीं है। जब मैं कहता हूं स्वच्छंद और स्वाभाविक होने को तो क्या होता है इसका अर्थ? इसका अर्थ होता है : मत करना कोई प्रयास। जो कुछ तुम हो बस वही हो जाओ। यदि तुम अजाग्रत हो, तो होओ अजाग्रत, क्योंकि तुम वही हो तुम्हारी स्वच्छंद और स्वाभाविक अवस्था में। अजाग्रत रही। यदि तुम कोई प्रयास करते हो, तो कैसे तुम स्वच्छंद और स्वाभाविक हो सकते हो। बस विश्रांत रहो; जो कुछ अवस्था है स्वीकार करो, और स्वीकार करो अपनी स्वीकृति को भी। वहां से मत सरको। चीजों के शात होते - होते समय गुजरता जायेगा। उस संक्रमण काल में, शायद तुम्हें स्पष्ट बोध न भी हो, क्योंकि चीजें सुव्यवस्थित हो रही हैं। एक बार चीजें सहज, शात हो जाती हैं और प्रवाह स्वाभाविक होता है, तो तुम अचानक विस्मित हो जाओगे अनपेक्षित रूप से, एक सुबह तुम पाओगे कि तुम जाग्रत हो। कोई जरूरत नहीं है कोई प्रयास करने की। या, यदि तुम काम कर रहे होते हो जागरूकता द्वारा और दोनों विधियां भिन्न हैं, वे अलग-अलग दृष्टिकोणों से आरंभ होती है तो मत सोचना स्वच्छंद और स्वाभाविक होने की बात। तुम तो इसे पा लेना जागरूक होने के अपने प्रयास दवारा। बिना किसी प्रयास की आवश्यकता के जागरूकता के स्वाभाविक बनने में लंबा समय लगेगा और जब तक वह स्थल न आये जहां प्रयास की आवश्यकता नहीं रहती, तब तक जागरूकता उपलब्ध नहीं हुई होती। जब तुम भूल सको सारे प्रयत्नों को और सहज ही जागरूक हो सको, केवल तभी तुमने उसे उपलब्ध किया होता है। तब, बिलकुल युगपत ही, तुम पा लोगे स्वच्छंद और स्वाभाविक होने की घटना को। वे साथ-साथ आती हैं। वे सदा एक साथ घटती हैं। वे दो पहलू हैं एक ही घटना के, तो भी तुम एक साथ उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते। यह तो ऐसा होता है जैसे कि कोई चढ़ रहा हो पर्वत पर और वहां बहुत सारे मार्ग हों; वे सब पहुंचते हों शिखर पर ही, वे सब एक चरम बिंदु तक पहुंच जाते हों, शिखर पर। लेकिन तुम एक साथ दो मार्गों पर तो नहीं चल सकते न। यदि तुम कोशिश करो, तो तुम पागल हो जाओगे और तुम कभी न पहुंचोगे शिखर तक। कैसे तुम दो मार्गों पर एक साथ चल सकते हो यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि वे सब एक ही शिखर तक ले जाते हैं? व्यक्ति को केवल एक ही मार्ग पर चलना होता है। अंततः जब कोई पहुंचता है शिखर पर, तो वह पायेगा कि सभी मार्ग वहां चरम बिंदु तक पहुंच गये हैं?| चलने के लिये सदा एक ही मार्ग चुनना। निस्संदेह जब तुम पहुंचते हो, तो तुम पाओगे कि सारे मार्ग पहंचेंगे एक ही जगह, उसी एक शिखर पर। जागरूक होना एक अलग ही प्रकार की प्रक्रिया होती है। बुद्ध ने इसी का अनुसरण किया। उन्होंने इसे कहा सम्यक-सचेतनता। इस युग में एक दूसरे बुद्ध ने, जार्ज गुरजिएफ ने इसका अनुसरण किया; उन्होंने कहा इसे स्व-स्मरण। एक और बुद्ध, कृष्णमूर्ति, कहे चले जाते हैं जागरूकता की, सचेत
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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