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________________ मन की कल्पनाएं हैं, झील की तरंगें हैं। वे केवल अशांत ही करती हैं तुम्हें; वे किसी संतोष की ओर तुम्हें नहीं ले जा सकती हैं। ....सहज-संयम, स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण......।' ये सब अंतर्संबंधित हैं। यदि तुम सहज होते हो तो तुम स्वयं का निरिकक्षण कर पाओगे। एक जटिल आदमी स्वयं का निरीक्षण नहीं कर सकता है, क्योंकि वह इतना बंटा हुआ होता है। उसके पास चारों ओर बहुत सारी चीजें होती हैं, बहुत सारी इच्छाएं, बहुत सारे विचार और बहुत सारी समस्याएं उठ रही होती हैं इन इच्छाओं और विचारों में से। वह निरंतर एक भीड़ में रहता है। कठिन होता है स्वाध्याय को पाना। एक सहज रूप से संयमी आदमी केवल खाता है, सोता है, प्रेम करता है और बस इतना ही। उसके पास पर्याप्त समय रहता है और बची रहती है पर्याप्त ऊर्जा निरीक्षण करने को, होने मात्र को, मात्र बैठने को और देखने को, और वह प्रसन्न रहता है। उसने खूब ठीक से खाया होता है, भूख तृप्त हो जाती है। उसने खूब अच्छी तरह से प्रेम किया होता है, उसके अंतस की ज्यादा गहरी भूख तृप्त हो जाती है। अब क्या करना? वह बैठता है, देखता है अपनी ओर। बंद कर लेता है अपनी आंखें; अपनी अंतस–सत्ता को ध्यान से देखता है। कहीं कोई भीड़ नहीं, कुछ ज्यादा करने को नहीं। चीजें इतनी सीधी-सहज होती हैं कि वह आसानी से उन्हें कर सकता है। और सहज बातो की एक गुणवत्ता होती है कि उन्हें करते हुए भी तुम स्वयं का अध्ययन कर सकते हो। जटिल चीजें मन के लिए बहुत ज्यादा हो जाती हैं। मन बहुत ज्यादा उलझ जाता है और बंटा हुआ होता है। और स्वाध्याय असंभव हो जाता है। पतंजलि जो अर्थ करते हैं स्वाध्याय का, वही अर्थ करते हैं गरजिएफ स्व-स्मरण का, या जिसे बदध कहते हैं सम्यक-बोध, या जिसे जीसस: कहते हैं ज्यादा सजग हो जाना, या कि जो अर्थ कृष्णमूर्ति का होता है, वे जब कहे चले जाते हैं ज्यादा सजग होने की बात। जब तुम्हारे पास करने को कुछ नहीं होता कुछ ज्यादा नहीं होता करने को, दिन भर की सहज बातें समाप्त हो गईं, तो कहां सरकेगी ऊर्जा? क्या होगा तुम्हारी ऊर्जा का? बिलकुल अभी तो तुम उथले ही रहते हो सदा, तुम्हारी कमतर ऊर्जा में, क्योंकि ऊर्जा के लिए इतनी ज्यादा व्यस्तताएं बनी रहती हैं। ऊर्जा के लिए इतनी सारी जटिलताएं बनी रहती हैं। तुम्हारे पास पर्याप्त ऊर्जा का उमडाव कभी नहीं रहता और बिना किसी ऊर्जा के जागरूक होने की कोई संभावना नहीं होती क्योंकि जागरूकता ऊर्जा का सूक्ष्मतम रूपांतरण है। वह तुम्हारी ऊर्जा का परम रूप है। यदि तुम्हारे पास पर्याप्त परिपूर्ण ऊर्जा नहीं होती, तो तुम जागरूक नहीं हो सकते। सतही ऊर्जा के बिंदु पर, निम्न ऊर्जा-तल पर, तुम जागरूक नहीं हो सकते; परिपूर्ण ऊर्जा की आवश्यकता होती है। एक सहज आदमी के पास इतनी ज्यादा ऊर्जा बची रहती है कि क्या करेगा इस ऊर्जा का? जो कुछ किया जा सकता है वह सब किया जा चुका है; दिन की समाप्ति ते हो; ऊर्जा त बैठे हए हात हा; जा
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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