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________________ 'क्या तुम मुझे बता सकती हो कि कब मरूंगा मैं?' उस स्त्री ने अपनी आंखें बंद कर लीं, ध्यानपूर्वक विचार किया और बोली, यहूदी छुट्टी का दिन।' हिटलर बोला, 'मतलब क्या है तुम्हारा कौन-सा छुट्टी का दिन?' वह बोली, 'वह बात अप्रासंगिक है। जब कभी मरेंगे आप, वह यहूदियों का छुट्टी का दिन होगा ।' मारपा ने कहां था, 'यह बात अप्रासंगिक है कि परमात्मा के मन में क्या है। जहां कहीं मैं जाऊं, वहा स्वर्ग ही होगा—क्योंकि मैं जानता हूं, बिना किसी कारण मैं प्रसन्न हूं।' एक सादगी से भरा व्यक्ति जान लेता है कि प्रसन्नता जीवन का स्वभाव है। प्रसन्न रहने के लिए किन्हीं कारणों की जरूरत नहीं होती है। बस, तुम प्रसन्न रह सकते हो केवल इसीलिए कि तुम जीवित हो! जीवन प्रसन्नता है, जीवन आनंद है, लेकिन ऐसा संभव होता है केवल एक सहज-सादे व्यक्ति के लिए ही। वह आदमी जो चीजें इकट्ठी करता रहता है, हमेशा सोचता है कि इन्हीं चीजों के कारण उसे प्रसन्नता मिलने वाली है। आलीशान भवन, धन, सुख-साधन; वह सोचता है कि इन्हीं चीजों के कारण वह प्रसन्न होने वाला है समस्या धन-दौलत की नहीं है, समस्या है आदमी की दृष्टि की जो धन खोजने का प्रयास करती है। दृष्टि यह होती है जब तक मेरे पास ये तमाम चीजें नहीं हो जातीं, मैं प्रसन्न नहीं हो सकता। यह आदमी सदा दुखी रहेगा। एक सच्चा सादगीपसंद आदमी जान लेता है कि जीवन इतना सीधा-सरल है कि जो कुछ भी है उसके पास, उसी में वह खुश हो सकता है। इसे किसी दूसरी चीज के लिए स्थगित कर देने की उसे कोई जरूरत नहीं है। तब सादगी का अर्थ होगा तुम्हारी आवश्यकताओं तक आ जाओ, इच्छाएं पागल होती हैं आवश्यकताएं स्वाभाविक होती हैं। भोजन, घर, प्रेम, तुम्हारी सारी जीवन-ऊर्जा को मात्र आवश्यकताओं के तल तक ले आओ, और तुम आनंदित होओगे और एक आनंदित व्यक्ति धार्मिक होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता, और एक अप्रसन्न व्यक्ति अधार्मिक होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। हो सकता है वह प्रार्थना करे, हो सकता है वह मंदिर जाए, मस्जिद जाए उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। एक अप्रसन्न व्यक्ति कैसे प्रार्थना कर सकता है? उसकी प्रार्थना में गहरी शिकायत होगी, दुर्भाव होगा । वह एक नाराजगी होगी। प्रार्थना तो एक अनुग्रह का भाव है, शिकायत नहीं । - केवल एक प्रसन्न व्यक्ति ही अनुगृहीत हो सकता है; उसका पूरा हृदय पुकारता है एक समग्र अहोभाव में, उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, क्योंकि परमात्मा ने उसे इतना ज्यादा दिया है बिना उसके मांगे ही । और परमात्मा ने इतना ज्यादा दिया है- तुम्हें जीवन मात्र देकर ही । एक प्रसन्न व्यक्ति प्रसन् होता है केवल इसलिए कि वह सांस ले सकता है। वही बहुत ज्यादा है। पल भर के लिए श्वास लेना मात्र ही पर्याप्त होता है, पर्याप्त से कहीं ज्यादा जीवन तो इतना आशीषपूर्ण है लेकिन एक अप्रसन्न व्यक्ति इसे समझ नहीं सकता। इसलिए ध्यान रहे, जितने ज्यादा तुम कब्जा जमाने की वृत्ति में जुड़ते हो, उतने ही कम प्रसन्न होओगे तुम जितने कम प्रसन्न होते हो तुम, उतने ही दूर तुम हो जाओगे परमात्मा से प्रार्थना से अनुग्रह के भाव से सीधे सहज होओ। आवश्यक बातों सहित जीओ और भूल जाओ आकांक्षाओं के बारे में, वे -
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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