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________________ दार्शनिक जीता है सतह पर जो कुछ वह कहता है - वह देखता अतीत में, उसे जोड़ता है अपने कथनों से। देखता है भविष्य में, उसे जोड़ता है भविष्य के साथ वह एक शृंखला निर्मित कर लेता है सतह पर। उस प्रकार की सुसंगतता तुम मुझ में न पाओगे। - सुसंगति की एक अलग गुणवत्ता होती है, जिसे समझना कठिन होता है, जब तक कि तुम उसे जीयो नहीं, फिर धीरे-धीरे जो तरंगें असंगत थी, खो जाती हैं और तुम पहुंच जाते हो सागर की गहराई तक, जहां निवास करती है शांति, सदा सुसंगत। चाहे सतह पर तूफान हो या न हो, बड़ी ऊंची लहरें और बड़ी अशांति हो या न हो - गहराई में होती है शांति। कोई लहर नहीं, एक तरंग भी नहीं। वह ज्वार हो कि भाटा हो, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है; गहन तल पर सागर सुसंगत होता है, एक समान होता है। मेरी सुसंगतता है अंतस की शब्दों की नहीं। लेकिन जब तुम उतरते हो तुम्हारे अपने भीतरी सागर में, तब तुम समझ पाओगे उसे बिलकुल अभी, तुम उसकी फिक्र मत लेना। जब कोई विशेष जूता तुम्हारे ठीक बैठता हो, तो खरीद लेना उसे और पहन लेना उसे दुकान के दूसरे जूतो को लेकर चिंतित मत होना। वे तुम्हें पूरे नहीं आते : कोई आवश्यकता नहीं उनके बारे में चिंता करने की। वे तुम्हारे लिए नहीं बने। लेकिन दूसरे और लोग हैं; कृपा करके जरा उनका भी स्मरण कर ना कोई है कहीं, जिसे पूरे आ जाएंगे वे जूते। बस देखना अपने पैरों को और तलाश करना अपने जूतो की ही, क्योंकि यह प्रश्न है अनुभूति का, बुद्धि का नहीं। जब तुम जाते हो जूतो की दुकान पर, तो क्या करते हो तुम? दो तरीके होते हैं : तुम नाप ले सकते हो अपने पैरों का और तुम नाप ले सकते हो जूतो का - वह एक बुद्धिजनित प्रयास होगा, एक गणितीय प्रयास यह देखने का कि वह पूरे आते हैं या नहीं। दूसरी बात होती है : तुम बस पहनी लेते हो जूते तुम्हारे पैरों में चलते हो, और अनुभव करते हो कि वे पूरे आते हैं या नहीं यदि वे पूरे आते हैं, तो वे ठीक बैठते हैं। हर चीज ठीक है, तुम फिक्र छोड़ सकते हो इसकी । गणित के अनुसार तो बिलकुल ठीक हो सकता है और हो सकता है कि जूता ठीक ही न बैठे, क्योंकि जूते किसी गणित को नहीं जानते। वे तो बिलकुल अनपढ़ होते हैं। मत चिंता करना इस बारे में। मुझे याद है : ऐसा हुआ कि जिस आदमी ने एवरेज का, औसत का नियम खोजा था, एक महान गणितज्ञ, एक ग्रीक, बहुत भरा हुआ था औसत के नियम के अपने आविष्कार से एक दिन वह पिकनिक पर जा रहा था अपनी पत्नी और अपने सात बच्चों के साथ। उन्हें एक नदी पार करनी पड़ी तो वह बोला, 'ठहरो ।' वह गया नदी में और चार या पांच स्थानों पर उसने नदी की गहराई नापी कुछ स्थानों पर वह एक फुट थी, कई स्थानों पर वह थी तीन फीट, कई स्थानों पर वह केवल छ: इंच गहरी थी नदियों की संगति नहीं बैठती गणित के साथ रेत पर उसने गणना की और औसत पायी डेढ़ फीट की। उसने नापा था अपने सारे बच्चों को और औसत पायी थी दो फीट की । ।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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