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________________ तुम पूछते हो कोई प्रश्न, मेरे पास उसके लिए कोई बना-बनाया उत्तर नहीं होता है। तुम पूछते हो कोई प्रश्न और मैं उसका उत्तर देता हूं। मैं नहीं सोचता कि मैं अपने पिछले कथनों के अनुरूप हूं या नहीं। मैं अतीत में नहीं जीता हूं और मैं नहीं सोचता हूं भविष्य की-कि जो कुछ मैं कह रहा हूं क्या भविष्य में भी मैं इसी बात को कह पाऊंगा। नहीं, कोई अतीत नहीं और नहीं है कोई भविष्य। बिलकुल इसी क्षण तुम पूछते हो प्रश्न और जो कुछ घटता है, घटता है। मैं प्रतिसंवेदित होता हूं। वह एक सहज-स्वाभाविक प्रत्युत्तर होता है, वह कोई उत्तर नहीं होता है। अगले दिन तुम फिर वही प्रश्न पूछते हो, लेकिन मैं उसी ढंग से प्रत्युत्तर नहीं दूंगा। मैं इस विषय में कुछ नहीं कर सकता। मेरे पास बने-बनाए तैयार उत्तर नहीं रहते हैं। मैं हूं दर्पण की भांति: जो चेहरा तुम ले आते हो, वह प्रतिबिंबित होता है। यदि तुम क्रोधित होते हो तो वह प्रतिबिंबित करता है क्रोध को, यदि तुम प्रसन्न होते हो, तो वह प्रतिबिंबित करता है प्रसन्नता को। तुम नहीं कह सकते दर्पण को, 'क्या बात है? कल मैं था यहां और तुमने झलकाया क्रोधी चेहरा, आज मैं हूं यहां और तुम झलका रहे हो एक बहुत प्रसन्न चेहरा। बात क्या है तुम्हारे साथ? क्या तुमने बदल दिया तुम्हारा मन?' दर्पण के कोई मन नहीं होता, दर्पण तो बस तुम्हें ही झलका देता है। तुम्हारा प्रश्न ज्यादा महत्वपूर्ण है मेरे उत्तर से। वस्तुत: तुम्हारा प्रश्न ही मुझमें उत्तर निर्मित कर देता है। आधा भाग तो तुम्हारे द्वारा ही भेज दिया जाता है, दूसरा आधा भाग होता है मात्र एक प्रतिध्वनि। तो यह निर्भर करता है-यह निर्भर करेगा तुम पर, यह निर्भर करेगा तुम्हें घेरने वाले वृक्षों पर, यह निर्भर करेगा आबोहवा पर, यह निर्भर करेगा अस्तित्व पर, उसकी समग्रता में। तुम पूछते हो प्रश्न, और मैं यहां कुछ नहीं हूं मात्र एक माध्यम। यह ऐसा है जैसे कि समष्टि तुम्हें उत्तर देती हो। जो कुछ भी होती है तुम्हारी आवश्यकता, वैसा ही होता है उत्तर जो कि चला आता है तुम तक। मत कोशिश करना तुलना करने की, अन्यथा तुम गड़बड़ी में पड़ जाओगे। कभी कोशिश न करना तुलना करने की। जब कभी तुम अनुभव करो कि कोई चीज तुम्हारे अनुकूल पड़ती है, तो बस उसका अनुसरण करना, उसे कर लेना। यदि तुम करते हो उसे तो जो कुछ बाद में चला आता है, तुम समझ पाओगे। तुम्हारा करना मदद देगा, तुलना मदद न देगी। तुम पूरी तरह पागल हो जाओगे, यदि तुम तुलना ही करते गए तो। हर क्षण मैं कई बातें कहता जाता हूं। बाद में, अपनी जिंदगी भर बोल चुकने के बाद, जो अध्ययन 'करेंगे उनका, और जो यह जांचने-छांटने का प्रयत्न करेंगे कि मैं क्या कहता हूं वे बिलकुल पागल ही हो जाएंगे। वे वैसा कर नहीं पाएंगे, क्योंकि इसी तरह तो यह अभी घट रहा है। वे हैं दार्शनिक; मैं नहीं हूं दार्शनिक। उनके पास एक निश्चित विचार होता है तुम पर आरोपित करने का। वे फिर-फिर उसी विचार पर जोर दिए चले जाते हैं। उनके पास कुछ है, जिसमें कि वे तुम्हें सिद्धांतबद्ध करना चाहेंगे। वे तुम्हारे मन को निश्चित अवस्था में डाल देना चाहेंगे, एक निश्चित दर्शन में। वे तुम्हें कुछ सिखा रहे होते हैं।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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