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________________ हिंदुओं ने विशेष प्रकार की सुगंधियों के लिए कहा है, विशेषकर मंदिरों के सुगंध भरे लोबान के लिए लेकिन उनकी लोबानें अलग तरह की हैं। जैसे कि कामवासनामय सुगंधियां होती हैं, आध्यात्मिक सुगंधियां भी होती है, और दोनों संबंधित है। बहुत लंबे समय की खोज के बाद हिंदुओं ने विशेष प्रकार की सुगंधियों को जो कि कामवासनामय नहीं हैं, खोज निकाला। उल्टे, ऊर्जा ऊपर सरकती है, न कि नीचे। लोबान और चंदन की अगरबत्ती बहुत-बहुत सार्थक बन गए। वे प्रयोग करते रहे उसका मंदिर में और मदद मिली इससे। जैसे कि ऐसा संगीत होता है जो तुम्हें कामवासनायुक्त बना सकता है। ऐसा संगीत भी है जो तुम्हें आध्यात्मिक भाव की अनुभूति दे सकता है। विशेषकर आधुनिक संगीत बहुत कामवासनामय होता है। शास्त्रीय संगीत बहुत आध्यात्मिक है। यही बात अस्तित्व रखती है सभी इंद्रियों के साथ. ऐसे चित्र हैं जो कि आध्यात्मिक हो सकते या कामवासनायुक्त; ध्वनियां हैं, महकें हैं, जो कि कामवासना से भरी हो सकती हैं या आध्यात्मिक हो सकती हैं। प्रत्येक इंद्रिय की दो संभावनाएं हैं : यदि ऊर्जा नीचे की ओर चली जाती है, तब वह होती है कामवासनामय, यदि ऊर्जा ऊपर की ओर उठती है, तब वह होती है आध्यात्मिक। तुम ऐसा कर सकते हो लोबान के साथ। जलाओ लोबान को, ध्यान करो उस पर, महसूस करो उसको, सुगंध महसूस करो उसकी, भर जाओ उससे, और फिर पीछे हटते जाओ, दूर हटते जाओ उससे। और उस पर ध्यान करते जाओ, करते चले जाओ और होने दो उसे अधिक से अधिक सूक्ष्म। एक घड़ी आती है जब तुम किसी चीज की अनुपस्थिति को अनुभव कर सकते हो। तब तुम आ पहुंचे होते हो बड़ी गहन जागरूकता तक। 'समाधि की निर्विचार अवस्था की परम शुद्धता उपलब्ध होने पर प्रकट होता है आध्यात्मिक प्रसाद।' लेकिन जब विषय संपूर्णतया तिरोहित हो जाता है-विषय की उपस्थिति समाप्त हो जाती है और विषय की अनपस्थिति भी समाप्त हो जाती है; विचार मिट जाता है और अ-विचार भी मिट जाता है, मन तिरोहित हो जाता है और अ-मन की धारणा तिरोहित हो जाती है केवल तभी तुम उपलब्ध होते हो उस उच्चतम को। अब यही है वह घड़ी जब अकस्मात ही प्रसाद तुम पर उतरता है। यही है वह घड़ी जब फूलों की वर्षा हो जाती है। यही है वह क्षण जब तुम जुड़ जाते हो अंतस सत्ता और जीवन के मल स्रोत के साथ। यही है वह क्षण जब तम भिखारी नहीं रहते; तम सम्राट हो जाते हो। यही है वह क्षण जब तुम संपूर्ण रूप से अभिषेकित हो जाते हो। इससे पहले तो तुम सूली पर थे; यही होता है वह क्षण जब सूली तिरोहित हो जाती है और तुम सम्राट हो जाते हो। निर्विचार समाधि में चेतना संपूरित होती है सत्य से ऋतम्भरा से।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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