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________________ लेकिन जब तक तुम स्वयं अनुभव नहीं करते, तुम चूकते चले जाओगे उन सब प्रसादों को जिन्हें कि अस्तित्व देता है उपहारों के रूप में। 'प्रसाद' का अर्थ है कि यह अस्तित्व की ओर से एक उपहार है। तुमने इसे अर्जित नहीं किया है, तुम इसे दावे से मांग नहीं सकते। वस्तुतः जब दावेदार चला जाता है, तो अचानक यह वहां मौजूद हो जाता है। 'समाधि की निर्विचार अवस्था की परम शुद्धता उपलब्ध होने पर प्रकट होता है आध्यात्मिक प्रसाद ।' और तुम्हारी अंतरतम सता प्रकाश के स्वभाव की है। चेतना प्रकाश है। चेतना ही है एकमात्र प्रकाश । तुम जी रहे हो बहुत अचेतन रूप से कई चीजें कर रहे हो न जानते हुए कि क्यों कर रहे हो, आकांक्षा कर रहे हो चीजों की, न जानते हुए कि क्यों मांग कर रहे हो चीजों की, न जानते हुए कि क्यों! एक अचेतन निद्रा में बहे चले जा रहे हो। तुम सब नींद में चलने वाले हो । निद्राचारिता एकमात्र आध्यात्मिक रोग है - निद्रा में चल रहे हो और जी रहे हो! ज्यादा बोधपूर्ण हो जाओ। विषयों के साथ ज्यादा बोधपूर्ण, चेतन्यपूर्ण होना शुरू करो। चीजों की ओर ज्यादा सजगता से देखो। तुम गुजरते हो एक वृक्ष के निकट से; वृक्ष को ज्यादा सजगता से देखो, रुक जाओ कुछ देर को, देखो वृक्ष की और आंखें मल लो अपनी ज्यादा सजगता से देखो वृक्ष की और तुम्हारी जागरुकता को इकट्ठा करो देखो वृक्ष की तरफ और भेद पर ध्यान देना । अकस्मात जब तुम सचेत हो जाते हो, वृक्ष कुछ अलग ही हो जाता है: वह ज्यादा हरा होता है, वह ज्यादा जीवंत होता है, वह ज्यादा सुंदर होता है। वृक्ष वही है, केवल तुम बदल गए । एक फूल की ओर देखो, ऐसे जैसे कि तुम्हारा सारा अस्तित्व इस देखने पर निर्भर करता हो। तुम्हारी सारी जागरूकता को उस फूल तक ले आओ और अचानक फूल महिमावान हो जाता है - वह ज्यादा चमकीला होता है, वह ज्यादा प्रदीप्त होता है। उसमें शाश्वत की कोई आभा होती है जैसे कि शाश्वता आ पहुंचा हो लौकिक संसार में किसी फूल के रूप में ही । सजगता से देखना तुम्हारे पति के, तुम्हारी पत्नी के, तुम्हारे मित्र के, तुम्हारी प्रेमिका के चेहरे कि तरफ ध्यान करना उस पर और अचानक तुम देखोगे न ही केवल शरीर को बल्कि उसको जो शरीर के पार का है, जो झर रहा है शरीर के भीतर से। दिव्यता का एक आभामंडल होता है शरीर के चारों ओर। प्रेमिका का चेहरा अब तुम्हारी प्रेमिका का चेहरा न रहा; प्रेमिका का चेहरा परमात्मा का चेहरा बन चुका है। देखना तुम्हारे बच्चे की ओर पूरी सजगता से जागरूकता से उसे देखना खेलते और हु अचानक विषय रूपांतरित हो जाता है। ,
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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