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________________ यह थोड़ा जटिल है। पहले तो, बहुत से प्रकार हैं। एक प्रकार ऊंघ वह होती है जो कि आती है यदि • तुम मुझे सुनते हो बहुत ध्यानपूर्वक तब वह निद्रा की भांति नहीं होती है, वह हिप्नोसिस की भांति, सम्मोहन की भांति अधिक होती है। तुम्हारा मेरे साथ इतना गहरा तालमेल बैठ जाता है कि तुम्हारा मन अ-क्रियान्वित होने लगता है। तुम बस सुनते हो मुझे और मुझे सुनते जाना भर ही लोरी जैसा हो जाता है। यदि ऐसी होती है अवस्था तो एक निश्चित उनींदापन वहां होगा ही। लेकिन यह केवल तभी आएगी, जब तुम मुझे बहुत ध्यानपूर्वक सुनो। तब यह बात निद्रा नहीं होती। यह सुंदर है और तुम्हें इसे लेकर अपराधी नहीं अनुभव करना चाहिए। यदि यह निर्मित होती है मुझे सुनने से, तो कोई समस्या नहीं। वस्तुतः यही होनी चाहिए अवस्था, क्योंकि तब तुम ज्यादा और ज्यादा गहरे में सुन रहे होते हो। तब मैं तुम्हें बेध रहा होता हूं बहुत गहरे रूप से, और तुम उनींदापन अनुभव कर रहे होते हो, क्योंकि मन कार्य नहीं कर रहा होता है। तुम विश्राम में होते। यह 'होने देने' की एक अवस्था होती है। तुम मुझे अपने में ज्यादा और ज्यादा गहरे व्याप्त होने दे रहे होते हो। यह शुभ है। कुछ गलत नहीं है इसमें। तुम इसे उनींदेपन की भांति अनुभव करते हो, क्योंकि यह एक निष्क्रियता होती है। तुम सक्रिय नहीं होते और वैसा होने की कोई जरूरत भी नहीं। जब तुम सुन रहे होते हो मुझे, तो सक्रिय होने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि यदि तुम सक्रिय होते हो तो तुम्हारा मन व्याख्या किए चला जाएगा। यह सुंदर है - और कोई जरूरत नहीं अपराधी अनुभव करने की - ऐसा होने दो। इसे अस्त-व्यस्त करने के लिए कोई प्रयास करने की कोई आवश्यकता नहीं मैं तुम्हारे भीतर गहरे में समा जाऊंगा। यह बात सहायक होती है। भारत में हमारे पास एक विशिष्ट शब्द है इसके लिए | पतंजलि इसे कहते हैं 'योग तंद्रा' - वह निद्रा जो आती है योग द्वारा कोई चीज यदि तुम समग्रता से करते हो, तो तुम बहुत आराम अनुभव करते हो, और वही आराम लगता है निद्रा जैसी । वह निद्रा नहीं होती, वह ज्यादा लगती है हिम्मोसिस की तरह हिप्नोसिस का अर्थ भी होता है निद्रा, लेकिन एक अलग प्रकार की निद्रा, जिसमें दो व्यक्तियों का गहन तालमेल बैठ जाता है। यदि मैं तुम्हें सम्मोहित करता हूं तो तुम मुझको सुन पाओगे, किसी और चीज को नहीं। सम्मोहित व्यक्ति सुनता है केवल सम्मोहनकर्ता को ही, किसी दूसरे को नहीं। वह मात्र केंद्रित होता है। इस एकांतिक एकाग्रता में, चेतन मन गिर जाता है और अचेतन क्रियान्वित हो जाता है। तुम्हारी गहराई सुनती है मेरी गहराई को, यह एक संप्रेषण होता है, गहराई से गहराई तक का मन की जरूरत नहीं होती। लेकिन खयाल में रखने की बात यह होती है कि तुम्हें मुझे बहुत ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए, केवल तभी ऐसा घटेगा । फिर होती है दूसरी प्रकार की निद्रा तुम मुझे नहीं सुन रहे होते, और मुझे न सुनते हुए इतनी देर केवल यहां बैठे रहने से ही तुम नींद अनुभव करने लगते हो या जो मैं कह रहा हूं वह तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा होता है, तुम कुछ ऊबा हुआ अनुभव करते हो। या फिर, जो मैं कह रहा होता हूं वह बहुत
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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