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________________ जिसे तुम हल कर सको, वह एक रहसाइ है। उसका स्वभाव ऐसा है कि उसे हल नहीं किया जा सकता है। लेकिन यदि तुम निरंतर तर्कपूर्ण ढंग से सोचते चले जाते हो, तो एक घड़ी आ पहुंचेगी जब कि तुम जा पहुंचोगे तर्क की सीमा तक। यदि तुम अधिक और अधिक सोचते चले जाते हो, तो तर्कपूर्ण सोच परिवर्तित हो जाएगी चिंतन-मनन में, विचार में। पहला चरण है तर्कयुक्त सोच, और यदि तुम जारी रखते हो उसे, तो अंतिम चरण होगा मनन। यदि दार्शनिक आगे बढता जाए, चलता चला जाए, कहीं रुके नहीं, तो किसी न किसी दिन उसे बनना ही होता है कवि, क्योंकि जब सीमा पार की जा चुकी होती है, तो अचानक वहां होती है कविता। कविता है अवलोकन, मनन; वह है विचार। इसे ऐसे समझो : एक तार्किक दार्शनिक बैठा हुआ है बाग में और देख रहा है गुलाब के फूल को। वह व्याख्या करता है उसकी। वह वर्गीकरण करता है उसका-वह जानता है किस प्रकार का गुलाब है वह, कहां से आया है वह-गुलाब का शरीर-विज्ञान, गुलाब का रसायन। वह हर चीज के बारे में सोचता है तर्कपूर्ण ढंग से। वह वर्गीकृत करता है उसे, परिभाषित करता है उसे, और चारों तरफ कार्य करता है। वस्तुत: वह गुलाब को छूता बिलकुल नहीं है। सिर्फ चारों तरफ-और चारों तरफ घूमता है उसके आसपास चक्कर और चक्कर लगाता है, तमाम इधर-उधर छूता है झाड़ी को, पर गुलाब को छोड़ देता तर्क नहीं छू सकता है गुलाब को। वह काट सकता है उसे, वह रख सकता है उसे खानों में, वह कर सकता है वर्गीकरण, वह लगा सकता है उस पर लेबल-लेकिन वह छ नहीं सकता है उसे। गलाब तर्क को छूने नहीं देगा। और यदि तर्क चाहे भी तो ऐसा संभव नहीं। तर्क के पास कोई हृदय नहीं, और केवल हृदय छू सकता है गुलाब को। तर्क केवल सिर की बात है। सिर नहीं छू सकता है गुलाब को। गुलाब अपने रहस्य को उद्घाटित नहीं होने देगा सिर के सामने, क्योंकि सिर है बलात्कार की भांति। और गुलाब खोलता है स्वयं को केवल प्रेम के लिए, किसी बलात्कार के लिए नहीं। विज्ञान बलात्कार है : कविता प्रेम है। यदि कोई व्यक्ति चलता चला जाता है, आइंस्टीन की भांति तो दार्शनिक हो या कि वैज्ञानिक हो या कि तार्किक हो वह बन जाता है कवि। आइंसटीन अपने अंतिम दिनों में कवि बन गया था। एडिंगटन कवि बन गया था अपने अंतिम दिनों में। वे बोलने लगे थे रहस्यों के बारे में। वे आ पहुंचे थे तर्क की सीमा पर। लोग जो सदा तार्किक बने रहते हैं, वे लोग होते हैं जो बिलकुल चरम सीमा तक नहीं गए होते; वे अपनी तर्कपूर्ण तर्कना के एकदम अंत तक नहीं गए होते। वे वस्तुत: तर्कपूर्ण होते ही नहीं। यदि वे वास्तव में तर्कपूर्ण हो जाएं, तो एक घड़ी जरूर आती ही है जहां कि तर्क समाप्त हो जाता है और कविता आरंभ होती है। विचार यानी मनन। एक कवि करता क्या है? -मनन करता है। वह मात्र देखता है फूल की ओर वह उसके बारे में सोचता नहीं है। यही है भेद, पर है बड़ा सूक्ष्म। तार्किक सोचता है फूल के बारे में कवि
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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