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________________ दूसरा प्रश्न: सम्यक ज्ञान की क्षमता मन की पांच क्षमताओं में से एक है लेकिन यह अ-मन की अवस्था नहीं है फिर यह कैसे संभव है कि जो कुछ इस केंद्र द्वारा देखा जाता है वह सत्य होता है? क्या सम्यक ज्ञान का यह केंद्र संबोधि के पश्चात कार्य करता है। क्या एक ध्यानी एक साधक भी इस केंद्र में उतर सकता है? 61. सम्यक ज्ञान का केन्द्र-प्रमाण-अभी मन के भीतर है। अज्ञान मन का होता है। और जान भी मन का होता है। जब तुम मन के पार चले जाते हो, वहां कुछ नहीं होता? न तो अज्ञान होता है और न ही ज्ञान। ज्ञान भी एक बीमारी है। यह एक अच्छी बीमारी है, एक सुनहरी बीमारी, लेकिन यह एक बीमारी है। इसलिए वास्तव में यह नहीं कहा जा सकता है कि बुद्ध जानते हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि वे नहीं जानते। वे पार चले गये हैं। किसी चीज का दावा नहीं किया जा सकता कि वे जानते हैं या नहीं जानते हैं। ___ जब कोई मन ही नहीं, तुम कैसे जान सकते हो या नहीं जान सकते हो' जानना मन के द्वारा होता है। मन के द्वारा तुम ठीक ढंग से जान सकते हो, मन के द्वारा ही तुम गलत ढंग से जान सकते हो। लेकिन जब मन नहीं है, शान-अज्ञान दोनों समाप्त हो जाते हैं। ऐसा समझना कठिन होगा, लेकिन यह आसान है यदि तुम समझ लेते हो कि मन जानता है इसलिए मन अज्ञानी हो सकता है। लेकिन जब मन न हो तो कैसे तुम अज्ञानी हो सकते हो और कैसे जानी हो सकते हो! तुम हो, लेकिन जानना और न जानना दोनों समाप्त हो गये हैं। मन के दो केंद्र हैं। एक सम्यक जान का है। यदि वह केंद्र क्रियाशील होता है.. और यह क्रियान्वित होने लगता है एकाग्रता, ध्यान, मनन, प्रार्थना के द्वारा; तब जो कुछ भी तुम जान लेते हो सत्य होता है। एक मिथ्या जान का केंद्र भी है। यह कार्य करता है यदि तुम उनींदे होते हो, यदि तुम सम्मोहित होने जैसी अवस्था में होते हो, किसी न किसी चीज दवारा मदहोश होते होकामवासना, संगीत, नशे या किसी चीज से। तुम आदी हो सकते हो भोजन के; तब यह नशा हो जाता है। शायद तुम बहुत ज्यादा खाते हो। शायद तुम खाने के लिए पागल और भोजन-ग्रसित हो सकते हो। तब खाना शराब की भांति हो जाता है। कोई चीज जो तुम्हारे मन पर स्वामित्व जमा लेती है, कोई चीज जिसके बिना तुम जी नहीं सकते, नशा देने वाली बन जाती है। और यदि तुम नशों दवारा जीते हो तब तुम्हारा मिथ्या ज्ञान का
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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