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________________ पागलखाने के बाग में एक पेडू के नीचे वह बैठा हुआ था, बगीचा एक बहुत बड़ी दीवार से घिरा हुआ था। खलील जिब्रान वहां गया, अपने दोस्त के पास एक बेंच पर बैठ गया और उससे पूछने लगा, 'क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है कि तुम यहां क्यों हो?' वह पागल आदमी हंस दिया। वह बोला, 'मैं यहां हूं क्योंकि मैं बाहर के उस बड़े पागलखाने को छोड़ देना चाहता था। मैं यहां शांति से हूं। इस पागलखाने में, जिसे तुम पागलखाना कहते हो, कोई पागल नहीं है।' पागल आदमी नहीं सोच सकते कि वे पागल हैं। यह पागलपन का एक बुनियादी लक्षण है। यदि तुम पागल हो, तो तुम नहीं सोच सकते कि तुम पागल हो। यदि तुम सोच सको कि तुम पागल हो, तब तुम्हारे लिए कोई संभावना है। यदि तुम सोच सको और समझ पाओ कि तुम पागल हो, तो तुम थोड़े स्वस्थचित हो। पागलपन अपनी समग्रता में घटित नहीं हुआ है तो यही है विरोधाभास, जो कि वास्तव में स्वस्थचित हैं वे जानते हैं कि वे पागल हैं, और वे जो पूरी तरह पागल हैं, नहीं सोच सकते कि वे पागल हैं। तुम कभी नहीं सोचते कि तुम पागल हो। यह पागलपन का ही हिस्सा है। यदि तुम केंद्रित नहीं हो, तो तुम स्वस्थचित नहीं हो सकते हो। तुम्हारी स्वस्थचितता केवल सतही है, आयोजित है। मात्र सतह पर ही तुम स्वस्थ लगते हो, और इसलिए तुम्हें अपने आस-पास के संसार को निरंतर धोखा देना पड़ता है। तुम्हें बहुत कुछ छुपाना पड़ता है, तुम्हें बहुत कुछ रोकना होता है। तुम हर चीज को बाहर नहीं आने देते। तुम सोचोगे कुछ लेकिन कहोगे कुछ और ही तुम ढोंग रच रहे हो और इसी आडम्बर के कारण तुम्हारे आस-पास न्यूनतम सतही मानसिक स्वास्थ्य तो हो सकता है, लेकिन भीतर तुम उबल रहे हो । कई बार विस्फोट होते हैं। क्रोध में तुम फूट पड़ते हो और वह पागलपन जिसे तुम छिपाये रहे, बाहर आ जाता है। यह तुम्हारी सारी व्यवस्थाएं तोड़ देता है। इसलिए मनसविद कहते हैं कि क्रोध अस्थायी पागलपन है। तुम फिर से संतुलन पा लोगे, तुम फिर अपनी वास्तविकता छिपा लोगे तुम फिर अपना बाहरी हिस्सा संवार लोगे। तुम फिर स्वस्थचित हो जाओगे और तब तुम कहोगे, 'यह गलत था। अपने न चाहने के बावजूद भी मैंने ऐसा किया। मेरा ऐसा इरादा न था । इसलिए मुझे माफ करो। लेकिन तुम्हारा वैसा इरादा था। वह ज्यादा असली था। क्षमा की यह मांग केवल एक ढोंग है। तुम फिर अपना बाहरी रंग- स्वप्न, अपना मुखौटा ठीक बना रहे हो। एक स्वस्थचित व्यक्ति का कोई मुखौटा नहीं होता। उसका चेहरा मॉलिक होता है जो कुछ भी वह है, वह है। लेकिन एक पागल आदमी को लगातार अपने चेहरे बदलने पड़ते हैं। हर घड़ी उसे अलग स्थिति के लिए, भिन्न संबंधों के लिए भिन्न मुखौटा इस्तेमाल करना पड़ता है। जरा अपने को ही देखना अपने चेहरे बदलते हुए जब तुम अपनी पत्नी के पास जाते हो, तुम्हारा एक चेहरा होता है, जब तुम अपनी प्रेमिका के पास जाते हो, तुम्हारा बिलकुल ही अलग चेहरा होता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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