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________________ पहला प्रश्न: आपने कहा कि मनुष्य के लिए केवल दो विकल्प हैं पागलपन या ध्यान लेकिन पृथ्वी के लाखों लोग दोनों में से किसी तक नहीं पहुंच पाये हैं। क्या आप सोचते हैं वे पहुंचेंगे? वे. पहुंच चुके! वे ध्यान में नहीं पहुंचे, पागलपन में पहुंच चुके है और वे पागल जो पागलखानों में हैं और वे पागल जो बाहर हैं इनमें अंतर केवल मात्रा का है। कोई गुणात्मक अंतर नहीं है, मात्रा का ही अंतर है। हो सकता है तुम थोड़े कम पागल हो, वे ज्यादा पागल होंगे, लेकिन जैसा मनुष्य है, पागल । मैं क्यों कहता हूं कि जैसा मनुष्य है, पागल है? पागलपन का अर्थ बहुत सारी चीजों से है। एक है- तुम केंद्रित नहीं हो और यदि तुम केंद्रित नहीं हो तो बहुत से स्वर होंगे तुम्हारे भीतर तुम अनेक हो, तुम भीड़ हो घर में कोई मालिक नहीं है और घर का हर नौकर मालिक होने का दावा करता है। वहां है अस्तव्यस्तता, द्वंद्व और एक अनवरत संघर्ष तुम निरंतर गृहयुद्ध में रहते हो। यदि यह गृहयुद्ध नहीं चल रहा होता, तब तुम ध्यान में उतरते। लेकिन यह दिन-रात चौबीसों घंटे चलता रहता है। कुछ क्षणों तक जो कुछ भी तुम्हारे मन में चलता हो उसे लिख लेना और पूरी ईमानदारी से लिखना । जो चलता है उसे ठीक-ठीक लिख देना और तुम स्वयं अनुभव करोगे कि यह विक्षिप्तता है। मेरे पास एक खास विधि है जिसका प्रयोग मै कई व्यक्तियों के साथ करता हूं। मैं उनसे कहता हूं कि एक बंद कमरे में बैठ जाओ और जो कुछ तुम्हारे मन में आये उसे जोर से बोलने लगो । उसे इतने जोर से कहो, ताकि उसे तुम सुन सको । केवल पंद्रह मिनट की बातचीत - और तुम अनुभव करोगे कि जैसे तुम किसी पागल आदमी को सुन रहे हो। निरर्थक, असंगत, असम्बद्ध टुकड़े मन में तैरने लगते हैं और यही है तुम्हारा मन तो शायद निन्यानबे प्रतिशत पागल हो। दूसरा कोई व्यक्ति सीमा पार कर चुका हो, वह सौ प्रतिशत के भी पार चला गया हो। जो सौ प्रतिशत के पार चले गये हैं उन्हें हम पागलखाने में डाल देते हैं। लेकिन तुम्हें पागलखाने में नहीं रखा जा सकता क्योंकि यहां इतने ज्यादा पागलखाने नहीं हैं, और हो भी नहीं सकते तब तो यह सारी पृथ्वी पागलखाना बन जायेगी ! खलील जिब्रान ने लिखी है एक छोटी-सी बोधकथा । वह कहता है कि उसका एक मित्र पागल हो गया, इसलिए उसे पागलखाने में डाल दिया गया। तब प्रेम और करुणावश ही वह उसे देखने गया, उसे मिलने गया।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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