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________________ धुंधली हो गयीं। वे नहीं जानते कि कहां सपना समाप्त होता है और कहां वास्तविकता आरंभ होती एक पागल आदमी के लिए भी सीमाएं धुंधली हो गयी हैं। वह नहीं जानता कि क्या वास्तविक है और क्या अवास्तविक। यदि कल्पनाशक्ति का ठीक प्रकार से प्रयोग किया जाये, तो तुम जान लोगे कि यह कल्पना है। और सचेत रहोगे कि यह कल्पना ही है। तुम उसमें मजा ले सकते हो, लेकिन तुम जानते हो कि यह वास्तविक नहीं है। जब लोग ध्यान करते हैं तो बहुत-सी बातें घटित होती हैं उनकी कल्पना द्वारा। उन्हें रोशनियां, रंग, दृश्य दिखने लग जाते हैं। वे स्वयं भगवान से बातें करने लगते हैं या जीसस के साथ चलने लगते हैं या कृष्ण के साथ नाचने लगते हैं। ये काल्पनिक चीजें हैं और ध्यानी को याद रखना पड़ता है कि ये कल्पनाशक्ति की क्रियाएं हैं। तुम उनका मजा ले सकते हो; इसमें कुछ गलत नहीं है। वे हैं, लेकिन मत सोचना कि वे वास्तविक हैं। ध्यान रहे, केवल साक्षी चैतन्य ही वास्तविक है, और कुछ भी वास्तविक नहीं है। जो कुछ घटित होता है, सुंदर हो सकता है, मजा लेने जैसा हो तो मजा लो। कृष्ण के साथ नाचना बहुत सुंदर है, इसमें कुछ गलत नहीं है। नाचो! उत्सव मनाओ! लेकिन ध्यान रहे निरंतर कि यह केवल एक कल्पना है-एक सुंदर सपना। इसमें खो मत जाना। यदि तुम खो जाते हो, तो कल्पना खतरनाक हो जाती है। कई धार्मिक व्यक्ति अपनी कल्पनाओं में खो जाते हैं। वे कल्पनाओं में रहते हैं और अपना जीवन गंवा देते हैं। मन की चौथी वृत्ति है निद्रा। जहां तक कि तुम्हारी बाहर गतिमान चेतना का संबंध है, निद्रा का अर्थ है मूर्छा। तुम्हारा चैतन्य स्वय में ही बहुत गहरे चला गया है। क्रिया रुक गयी है; सचेतन क्रिया रुक गयी है। मन कार्य नहीं कर रहा है। निद्रा अ_क्रिया है मन की। यदि तुम्हें सपना आ रहा है, तो वह निद्रा नहीं है। तुम केवल जागने और सोने के बीच हो। तुमने जागना छोड़ दिया है, लेकिन अभी तुमने निद्रा में प्रवेश नहीं किया है। तुम तो बस बीच में हो। निद्रा का अर्थ है एक समग्न निर्विषय अवस्था। कोई क्रिया, कोई चेष्टा मन में नहीं है। मन पूरी तरह से लीन हो गया है। वह विश्राम में है। यह निद्रा सुंदर है, यह जीवनदायिनी है। तुम उपयोग कर सकते हो। और यदि तुम जानते हो कि इस निद्रा का उपयोग कैसे करना है, तो यह समाधि बन सकती है। समाधि और निद्रा बहुत भिन्न नहीं हैं। अंतर केवल यही है कि समाधि में तुम जागरूक रहोगे। दूसरी हर चीज समान होगी। निद्रा में हर चीज वैसी ही होती है। फर्क केवल यही है कि तुम जागरूक नहीं होते। तुम उसी आनंद में होते हो जिसमें बुद्ध ने प्रवेश किया है, जिसमें रामकृष्ण जीते रहे हैं, जिसमें जीसस ने अपना घर बनाया। गहरी निद्रा में तुम उसी सुखद अवस्था में होतै हो, लेकिन तुम जागरूक नहीं होते
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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