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________________ यदि सम्यक ज्ञान क्रियाशील होता है, यदि तुम्हारे मन ने सम्यक ज्ञान की वृत्ति को ग्रहण कर लिया है, तो तुम धार्मिक हो जाओगे। इसे समझो। पतंजलि पूरी तरह से भिन्न हैं। पतंजलि नहीं कहते कि यदि तुम मसजिद में गुरुद्वारे में, मंदिर में जाओ, यदि तुम कोई धार्मिक विधिविधान, कोई प्रार्थना संपन्न करो तो वही धर्म है। नहीं, वह धर्म नहीं है। तुम्हें सम्यक ज्ञान के अपने केंद्र को क्रियाशील करना है। तो चाहे तुम मंदिर जाते हो या नहीं, इसका महत्व नहीं है। यदि सम्यक ज्ञान का तुम्हारा केंद्र क्रियाशील हो जाता है तो जो कुछ भी तुम करो वह प्रार्थना है, और जहां तुम जाओ, वहां मंदिर है। कबीर ने कहा है, 'जहां कहीं मैं जाता हूं मैं आपको पाता हूं मेरे भगवान! जहां कहीं बढ़ता हूं मैं आपमें बढ़ता हूं मैं तुमसे जा मिलता हूं। और जो कुछ मैं करता हूं-चाहे चलना या खाना-वह प्रार्थना है।' कबीर कहते हैं, 'यह सहजता मेरी समाधि है। सहज हो जाना ही मेरा ध्यान है।' मन की दूसरी वृत्ति है, असत्य ज्ञान। यदि तुम्हारा असत्य ज्ञान का केंद्र कार्य कर रहा है तो जो कुछ भी तुम करो, तुम गलत ढंग से करोगे। और जो कुछ भी तुम चुनो, गलत ढंग से चुनोगे। जो कुछ भी निर्णय तुम करोगे गलत होगा। क्योंकि वास्तव में तुम निर्णय कर ही नहीं रहे। वह गलत केंद्र कार्य कर रहा है। ऐसे लोग हैं जो स्वयं को बहुत अभागा अनुभव करते है, क्योंकि जो कुछ वे करते हैं, वह गलत हो जाता है। वे कोशिश करते है कि गलत नहीं करेंगे, लेकिन इससे मदद मिलने वाली नहीं है क्योंकि केंद्र को बदलना होगा। उनके मन गलत ढंग से कार्य करते हैं। वे सोच सकते है कि वे अच्छा कर रहे हैं लेकिन वे बुरा करेंगे। अपनी तमाम शुभ इच्छाओं के बावजूद वे इससे अन्यथा नहीं कर सकते। ये निस्सहाय हैं। मुल्ला नसरुद्दीन एक संत के पास जाया करता था। वह कई-कई दिन तक उसके पास जाता रहा। वह संत मौनी संत था और वह कुछ बोलता नहीं था। तब मुल्ला नसरुद्दीन को कहना पड़ा, 'मैं आपके पास बार-बार आता रहा, आपके कुछ कहने की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन आपने कुछ नहीं कहा है। और जब तक आप बोलते नहीं, मैं समझ सकता नहीं। इसलिए मेरी जिंदगी भर के लिए मुझे कोई संदेश दे दें, कोई दिशा, जिससे कि मैं उसी दिशा की ओर बढ़ सकू।' उस सूफी फकीर ने कहा, 'नेकी कर और कुएं में डाल।' सबसे पुरानी सूफी कहावतो में यह एक कहावत है, 'नेकी कर और कुएं में डाल।' इसका मतलब है, अच्छा करो और फिर उसे फौरन भूल जाओ। इस बात को साथ ढोते हुए मत चलो कि तुमने अच्छाई की है। यदि तुम्हारा गलत केंद्र कार्य कर रहा हो तो जो कुछ तुम करोगे, वह गलत होगा। तुम कुरान पढ़ सकते हो, तुम गीता पढ़ सकते हो। और तुम ऐसे अर्थ ढूंढ निकालोगे कि कृष्ण चौकेंगे, मोहम्मद चौकेंगे यह जान कर कि तुम ऐसे अर्थ भी खोज सकते हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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