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________________ नही आता; वह 'आज' की तरह आता है। पर तब तक तुम्हारा मन फिर से कहीं और आगे बढ़ चुका होता है। तुम अपने से भी आगे दौड़ते चले जाते हो यही है सपनों का अर्थ। तुम यथार्थ से तो एकात्म नहीं हो, वह जो कि पास है, वह जो यहां और अभी उपस्थित है। तुम कहीं और हो, आगे गतिमान-आगे कूदते-फांदते! उस कल को, उस भविष्य को तुमने कई-कई नाम दे रखे है। कुछ लोग उसे स्वर्ग कहते है, कुछ मोक्ष कहते हैं। लेकिन यह सदा भविष्य में है। कोई धन के बारे में सोच रहा है, पर वह धन भी भविष्य में ही मिलने वाला है। कोई स्वर्ग की आकांक्षा में खोया T है, पर वह स्वर्ग मृत्यु के उपरांत ही आने वाला है। स्वर्ग है दूर, सुदूर किसी भविष्य में। जो नहीं है उसी के लिए तुम अपना वर्तमान खोते हो-यही है स्वप्न में जीने का अर्थ। तुम अभी और यहीं नहीं हो सकते। इस क्षण में होना दुःसाध्य प्रतीत होता है। तुम अतीत में जी सकते हो, क्योंकि वह भी स्वप्नवत है : उन बातों की स्मृतिया, यादें, जो अब नहीं हैं। और या तुम भविष्य में जी सकते हो, लेकिन वह भी एक प्रक्षेपण है, यह फिर अतीत में से ही कुछ निर्मित करना है। भविष्य कुछ और नही,वरन अतीत की ही प्रति छबि है-ज्यादा रंगीन, ज्यादा सुंदर, ज्यादा खुशनुमा, लेकिन वह है तो अतीत का ही एक परिष्कृत स्वप्न। तम अतीत के सिवा और किसी चीज के बारे में सोच ही नहीं सकते। और भविष्य भी अतीत की प्रतिछाया है। न तो अतीत अस्तित्वगत है और न भविष्य। है तो वर्तमान ही, लेकिन तुम कभी उसमें नहीं होते। यही है सपनों में जीने का अर्थ। तो नीत्से सही है जब वह कहता है कि मनुष्य सत्य के संग जी नहीं सकता। उसे झठ चाहिए, उसी के सहारे वह जी सकता है। नीत्से कहता है कि हम सब कहे जाते हैं कि हमें सत्य चाहिए, लेकिन कोई सत्य को नहीं चाहता। हमारे तथाकथित सत्य कुछ और नहीं, झूठ ही हैं-सुंदर झूठ! नग्न वास्तविकता को देखने को कोई तैयार नहीं है। यह जो मन है वह योग के पथ पर प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि योग सत्य को उद्घाटित करने की एक पद्धति है। योग तो एक विधि है स्वप्नविहीन मन तक पहुंचने की। योग विज्ञान हैअभी और यहां होने का। योग का अर्थ है कि अब तम तैयार हो कि भविष्य की कल्पना न करोगे। इसका अर्थ है कि तुम्हारी वह अवस्था है कि अब तुम न आशाएं बांधोगे और न स्वयं की सत्ता से, वर्तमान क्षण से आगे छलांग लगाओगे। योग का अर्थ है. सत्य का साक्षात्कार-जैसा वह है। इसलिए योग के मार्ग में वही प्रवेश कर सकता है जो अपने मन से जैसा वह है, बिलकुल थक गया हो, निराश हो गया हो। यदि तुम अब भी आशा किये चले जा रहे हो कि तुम मन द्वारा कुछ न कुछ पा लोगे, तो योग का यह पथ तुम्हारे लिए नहीं है। समग्र पराजय का भाव चाहिए इस सत्य का रहस्योद्घाटन कि यह मन जो आशाओं को पक्के रखता है, यह मन जो प्रक्षेपण करता
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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