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________________ वे वृत्तियां हैं प्रमाण (सम्यक ज्ञान), विपर्यय ( मिथ्या ज्ञान), विकल्प (कल्पना), निद्रा और स्मृति । मन वासना का स्रोत हो सकता है और मुक्ति का भी । मन इस संसार का द्वार बन जाता है, प्रवेश बन ? जाता है लेकिन वह बाहर निकलने का द्वार भी बन सकता है। मन तुम्हें नरक की ओर ले जाता है, लेकिन मन तुम्हें स्वर्ग की ओर भी ले जा सकता है। यह इस पर निर्भर करता है कि मन का उपयोग कैसे किया जाता है। मन का ठीक उपयोग ध्यान बन जाता है, मन का गलत उपयोग पागलपन बन जाता है। हर व्यक्ति में मन है। अंधकार और प्रकाश दोनों संभावनाएं इसमें विहित हैं। मन स्वयं न शत्रु है और न मित्र है। तुम इसे मित्र बना सकते हो और तुम इसे शत्रु बना सकते हो। यह तुम पर निर्भर करता है तुम जो मन के पीछे छिपे हुए हो। यदि तुम अपने मन को अपना उपकरण बना सकते हो, अपना दास, तो मन वह मार्ग बन जाता है जिसके द्वारा तुम चरम साध्य तक पहुंच सकते हो। यदि तुम गुलाम बन जाते हो और मन को मालिक होने देते - हो, तब यह मन जो मालिक बन गया है तुम्हें चरम मनोव्यथा और अंधकार तक ले जायेगा । सारी तरकीबें सारी विधियां, योग के सारे मार्ग वास्तव में गहरे स्वप्न से एक ही समस्या से संबंधित हैं : मन का उपयोग कैसे करें। ठीक प्रकार से उपयोग किया हुआ मन उस बिंदु तक पहुंच जाता है जहां यह अ-मन बन जाता है। गलत प्रकार से उपयोग किया हुआ मन उस बिंदु तक पहुंच जाता है जहां यह मात्र अराजकता बना होता है। बहुत-सी आवाजें, परस्पर विरोधी, विरोधाभाषी भ्रमभरी, विक्षिप्त । 1 पागलखाने में बैठे एक पागल आदमी ने और बोधि वृक्ष के नीचे बैठे बुद्ध ने दोनों ने मन का प्रयोग किया है। दोनों मन में से गुजरे हैं लेकिन बुद्ध उस परिस्थिति तक आ पहुंचे हैं जहां मन विलीन हो जाता है। ठीक प्रकार से उपयोग करने पर यह मिटने लगता है और एक घड़ी आती, जब यह होता ही नहीं है। उस पागल आदमी ने भी मन का उपयोग किया है। गलत ढंग से उपयोग किया बंट हुआ हो जाता है। गलत प्रकार से उपयोग किया मन अनेक बन जाता है। गलत प्रकार से प्रयुक्त होने पर यह भीड़ बन जाता है और अंत में केवल पागल मन ही वहां होता है और तुम बिलकुल अनुपस्थित होते हो। हुआ
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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