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________________ हो, तो ठीक इसका विपरीत ढांचा प्रयुक्त करना। या, अगर तुम किसी मनोदशा को उत्पन्न करना चाहते हो, तो इसके ही ढांचे का प्रयोग करना। अभिनेता, जाने या अनजाने, यह जान लेते हैं क्योंकि कई बार उन्हें क्रोधित होना होता है बिना क्रोधित हुए ही। तो क्या करते होंगे वे? उन्हें उपयुक्त श्वसन-ढांचा निर्मित करना होता है। शायद उन्हें पता भी न होता हो, पर वे शुरू कर देते है ऐसा श्वास लेना जैसे कि वे क्रोधित हों। तब जल्दी ही रक्त तेजी से दौड़ने लगता है और विष प्रवाहित हो जाते हैं। बिना उनके क्रोधित हुए ही उनकी आंखें लाल हो जाती हैं, और वे एक सूक्ष्म क्रोधावस्था में होते हैं बिना क्रोधि र ही। उन्हें प्रेम करना होता है बिना प्रेम में पड़े ही; उन्हें प्रेम प्रकट करना पड़ता है बिना प्रेम अनुभव किये ही। यह कैसे करते होंगे वे? वे एक निश्चित रहस्य जानते हैं योग का। इसलिए मैं हमेशा कहता है कि एक योगी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हो सकता है। वह होता ही है। उसका मंच विशाल है; बस यही। वह अभिनय कर रहा होता है। किसी रंगमंच पर नहीं, बल्कि संसार के रंगमंच पर। वह अभिनेता होता है, वह कर्ता नहीं है। और भेद यही है कि वह एक विशाल नाटक में भाग ले रहा होता है और वह उसका साक्षी बन सकता है। वह अलग बना रह सकता है और निर्लिप्त रह सकता है। जब ध्यान से अतींद्रिय संवेदना उत्पन्न होती है तो मन आत्मविश्वास प्राप्त करता है और इसके कारण साधना का सातत्य बना रहता है। अपने श्वसन-ढांचे को जानो, और मन के वातावरण को किस प्रकार परिवर्तित किया जाता है, मनोदशाओं को कैसे बदला जाता है इस बात की कुंजियां तुम पा जाओगे। और यदि तुम दोनों छोरों से कार्य करते हो, तो ज्यादा बेहतर होगा। प्रसन्न के प्रति मैत्रीपूर्ण होने का प्रयत्न करो, बुरे के प्रति तटस्थ होने का, और तुम्हारे श्वसन-ढांचे को भी बदलना और रूपांतरित करना जारी रखो। तब चली आयेगी अतींद्रिय संवेदना। यदि तुमने एल एस डी, मारिजुआना, हशीश लिया हो, तो तुम जान लेते हो कि अतींद्रिय संवेदना जगती है। तुम साधारण चीजों की ओर देखते हो, और वे असाधारण हो उठती हैं। अल्डुअस हक्सले अपने संस्मरणों में कहता है कि जब उसने एल एस डी पहली बार ली थी, तब वह एक साधारण कुर्सी के सामने बैठा हुआ था। और जब वह अधिकाधिक जुड़ता गया नशे के साथ, जब उस पर चढ़ गया नशा, तो कुर्सी तुरंत रंग बदलने लगी। वह चमक उठी। एक साधारण कुर्सी जिस पर कभी उसने कोई ध्यान न दिया था इतनी सुंदर हो गयी, उसमें से बहुत सारे रंग
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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