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________________ विरुद्ध होते हो। पक्ष में होते हो, फिर विरुद्ध, और यही चलता जाता है। यदि दूसरा द्वार खुला होता है और तुम प्रेम में होते हो, चाहे तर्क का द्वार बंद भी हो, तो मैं संपर्क में बना रह सकता हूं। तीसरा द्वार उपचेतन के नीचे होता है जो है अचेतन तर्क प्रथम द्वार खोल देता है यदि तुम मेरे साथ कायल होने का अनुभव करो। प्रेम द्वितीय द्वार खोल देता है जो पहले से ज्यादा बड़ा होता है। यदि तुम मेरे प्रेम में होते हो कायल नही, बल्कि प्रेम में होते हो, एक घनिष्ठ संबंध अनुभव करते हो, एक समस्वरता, एक स्नेही भाव अनुभव करते हो। तीसरा द्वार खुलता है समर्पण द्वारा। यदि तुम मेरे द्वारा संन्यस्त हुए हो, यदि तुम संन्यास में छलांग लगा चुके हो, यदि तुमने छलांग लगा दी है और मुझसे कह दिया है,' अब- अब तुम होओ मेरे मन अब 'तुम थाम लो मेरी बागडोर अब तुम मेरा मार्ग निर्देशन करो और मैं पीछे चलूंगा।' ऐसा नहीं है कि तुम इसे हमेशा ही कर पाओगे, लेकिन मात्र यह चेष्टा ही कि तुमने समर्पण किया, तीसरा द्वार खोल देता है। | तीसरा द्वार खुला रहता है हो सकता है तार्किक रूप से तुम मेरे विरुद्ध होओ। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, मैं संपर्क में होता हूं। हो सकता है तुम मुझे घृणा करो। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता; मैं संपर्क में होता हूं। क्योंकि तीसरा द्वार सदा खुला रहता है। तुमने समर्पण कर दिया है। और तीसरे द्वार को बंद करना बहुत कठिन होता है, बहुत-बहुत कठिन खोलना कठिन है, बंद करना भी कठिन है। खोलना कठिन होता है, पर इतना कठिन नहीं जितना कि इसे बंद करना। लेकिन वह भी बंद किया जा सकता है क्योंकि तुमने इसे खोला है। वह भी किया जा सकता है बंद किसी दिन तुम निर्णय कर सकते हो तुम्हारे समर्पण को लौटा लेने का या तुम जा सकते हो और स्वयं का समर्पण किसी दूसरे के प्रति कर सकते हो। लेकिन ऐसा कभी नहीं, करीब-करीब कभी नहीं घटता है। क्योंकि इन तीनों द्वारों सहित गुरु चौथे द्वार को खोलने का कार्य कर रहा होता है। अत: लगभग असंभव संभावना होती है कि तुम तुम्हारा समर्पण वापस लौटा लोगे। इससे पहले कि तुमने इसे लौटा लिया हो, गुरु अवश्य चौथा द्वार खोल चुका होता है, जो तुम्हारे बाहर होता है। तुम इसे खोल नहीं सकते, तुम इसे बंद नहीं कर सकते। जो द्वार तुम खोलते हो, इसके तुम मालिक रहते हो और तुम उसे बंद भी कर सकते हो लेकिन चौथे को तुमसे कुछ लेना-देना नहीं होता है। वह है परम चेतना । इन तीनों द्वारों को खोलना आवश्यक है। जिससे कि गुरु चौथे द्वार के लिए चाबी गढ़ सके, क्योंकि तुम्हारे पास नहीं है चाबी अन्यथा तुम स्वयं उसे खोलने के योग्य हो जाते। गुरु को इसे गढ़ना होता है। यह एक जालसाजी, एक फोर्जरी है क्योंकि स्वयं मालिक के पास चाबी नहीं है। गुरु का सारा प्रयास यही है कि इन तीनों द्वारों से चौथे में प्रवेश करना और चाबी ढ़ और इसे खोलना, इसके लिए उसे पर्याप्त समय मिले। एक बार यह खुल जाता है, तो तुम नहीं
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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