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________________ भारत में कोई परवाह नहीं करता महर्षि महेश योगी की क्योंकि लोग इतनी गहरी नींद सोये हए हैं, खरटे भर रहे है! उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं। लेकिन जब कोई देश अमीर हो जाता है और लोग कोई शारीरिक श्रम नहीं कर रहे होते, तो निद्रा विलीन हो जाती है। तब या तो तुम ट्रैकिलाइजर ले सकते हो या टी एम! और टी एम, निस्संदेह बेहतर है क्योंकि यह बहुत रासायनिक नहीं होता है। लेकिन फिर भी यह बहुत गहरी सम्मोहक चाल होती है। सम्मोहन का कुछ निश्रित अवस्थाओं में प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इसे आदत ही नहीं बना लेना चाहिए, क्योंकि अंततः यह तुम्हें सोया हुआ अस्तित्व देगा। तुम ऐसे जीयोगे जैसे हिप्रासिस में हो। तुम जादू द्वारा संचालित शव (झोम्बी) की भांति लगोगे। तुम जागरूक और सचेत नहीं होओगे। और ओम् की ध्वनि एक ऐसी लोरी होती है, क्योंकि यह सम्पूर्ण ध्वनि है। यदि तुम इसे दोहराते जाते हो, तुम इसके द्वारा पूर्णरूपेण मादक हो जाते हो, मदहोश हो जाते हो। और फिर खतरा है, क्योंकि वास्तविक बात है मदहोश न होना। वास्तविक बात है अधिकाधिक जागरूक होना। अत: दो सम्भावनाएं होती हैं इसकी कि कैसे तुम तुम्हारी चिंताओं से अलग हो सकते हो। मनसविद मन को तीन परतों में बांटते हैं। पहली को वे कहते हैं चेतन, दूसरी को वे कहते हैं उपचेतन और तीसरी को वे कहते हैं अचेतन। चौथी से वे अभी भी परिचित नहीं हुए। पतंजलि इसे कहते हैं परम चैतन्य| यदि तुम ज्यादा सचेत हो जाते हो,तुम चेतन से आगे बढ़ जाते हो और परम चैतन्य तक पहुंच जाते हो। यह होती है एक भगवान की अवस्था-परम चैतन्य, परम जागरूक। लेकिन यदि तुम मंत्र का जाप करते हो बिना ध्यान किये, तो तुम उपचेतन में जा पड़ते हो। यदि तुम चले जाते हो उपचेतन में तो यह तुम्हें अच्छी नींद देगा, अच्छी तन्दरुस्ती, अच्छा स्वास्थ्य। लेकिन यदि तुम इसी तरह जप जारी रखते हो,तो तुम अचेतन में जा पडोगे। तब तुम सम्मोहनसंचालित मूढ, झोम्बी बन जाओगे, और यह बहुत ही बुरी बात है। यह बात ठीक नहीं होती। मंत्र का प्रयतो किया जा सकता है सम्मोहन विद्या की भांति। यदि तुम्हारा ऑपरेशन किया जा रहा है अस्पताल में तो यह ठीक है। क्लोरोफार्म लेने की अपेक्षा, सम्मोहित हो जाना अच्छा होता है। यह कम बुराई है। यदि तुम निद्रालु अनुभव नहीं करते, तो यह जप करना बेहतर है ट्रैकिलाइजर लेने की अपेक्षा। यह कम खतरनाक होता है, कम हानिकारक होता है। लेकिन यह ध्यान नहीं है। अत: पतंजलि निरंतर जोर देते हैं, 'दोहराओ और ध्यान करो ओम् पर।' दोहराओ और अपने चारों तरफ ओम् की ध्वनि निर्मित कर लो लेकिन इसी में खो मत जाना। यह इतनी मीठी ध्वनि होती है, तुम खो सकते हो। सचेत बने रहो। अधिकाधिक जागरूक बने रहो। ध्वनि जितनी ज्यादा गहरे में जाती है, उतने ही और अधिक तुम जाग्रत होते जाते हो। तब ध्वनि तनावहीन कर देती है तुम्हारे स्रायु-तंत्र को, लेकिन तुम्हें नहीं। ध्वनि तुम्हारे शरीर को हलका कर देती है, लेकिन तुम्हें नहीं। ध्वनि तुम्हारे सारे शरीर को और शारीरिक व्यवस्था को निद्रा में भेज देती है, लेकिन तुम्हें नहीं।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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