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________________ ओम को दोहराना और उस पर ध्यान करना सारी बाधाओं का विलीनीकरण और एक नवचेतना का जागरण लाता है। यदि तुम दोहराओ और ध्यान मत करो, तो यह बात हो जायेगी महर्षि महेश योगी का भावातीत ध्यान, ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन-टी एम। यदि तुम दोहराते हो और ध्यान नहीं करते, तो यह बात एक हिप्नाटिक चाल हो जाती है। तब तुम्हें नींद आ जाती है। यह अच्छा है क्योंकि निद्रा में उतर जाना सुंदर होता है। यह बात स्वस्थ है। तुम अधिक शांत होकर निकलोगे इसमें से। तुम कहीं अधिक स्वस्थता अनुभव करोगे, अधिक ऊर्जा, अधिक जोश अनुभव करोगे। लेकिन यह ध्यान नहीं। यह एक साथ शामक दवा और पेप-पिल लेने की भांति है। यह तुम्हें अच्छी नींद देगी, और फिर तुम सुबह बहुत अच्छा अनुभव करते हो। ज्यादा ऊर्जा मौजूद होती है। लेकिन यह ध्यान नहीं है। और यह बात खतरनाक भी हो सकती है यदि तुम इसका उपयोग लम्बे समय तक करते हो। तुम्हें उसकी लत पड़ जाती है। और जितना ज्यादा तुम उपयोग करते हो इसका, उतना ज्यादा तुम समझ जाओगे कि एक स्थल ऐसा आ जाता है जहां तुम अटक जाते हो। अब यदि तुम इसे नहीं करते, तो तुम अनुभव करते हो कि तुम कुछ चूक रहे हो। यदि तुम इसे करते हो, तो कुछ घटता नहीं। इस बात के सार-निचोड़ को खयाल में ले लेना है- ध्यान में, जब कभी तुम अनुभव करते हो कि अगर तुम इसे नहीं करते तो तुम इसे चूक रहे होते हो और यदि करते हो इसे तो कुछ घटता नहीं, तो तुम अटके हुए होते हो। तब तुरंत कुछ करने की जरूरत होती है। यह बात एक आदत हो गयी है-वैसे ही जैसे कि सिगरेट पीना। यदि तुम सिगरेट नहीं पीते, तो तुम अनुभव करते हो कि कुछ चूक रहा है। तुम निरंतर अनुभव करते हो कि कुछ किया जाना चाहिए तम बेचैन अनुभव करते हो। और यदि तुम सिगरेट पीते हो, तो कुछ प्राप्त नहीं होता है। आदत की परिभाषा यही है। यदि कुछ प्राप्त होता है तो ठीक; लेकिन कुछ प्राप्त नहीं होता। यह एक आदत हो गयी है। यदि तुम इसे नहीं करते, तो तुम दुखी अनुभव करते हो। यदि तुम इसे करते हो,तो कोई आनन्द नहीं आता इससे। दोहराओ और ध्यान करो। दोहराओ 'ओम् ओम् ओम्' और इस दोहराव से अलग खड़े रहो।' ओम् ओम् ओम्' - यह ध्वनि तुम्हारे चारों ओर है और तुम सचेत हो, ध्यान दे रहे हो, साक्षी बने हुए हो। यह ध्यान करना होता है। ध्वनि को अपने भीतर निर्मित कर लो और फिर भी शिखर पर खड़े द्रष्टा बने रहो। घाटी में, ध्वनि सरक रही है- 'ओम् ओम् ओम्' - और तुम ऊपर खड़े हो और देख रहे हो साक्षी बने हुए हो। यदि तुम साक्षी नहीं होते, तो तुम सो जाओगे। यह सम्मोहक निद्रा होगी। और पश्रिम में भावातीत ध्यान लोगों को आकर्षित कर रहा है क्योंकि उन्होंने ठीक से सोने की क्षमता गंवा दी है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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