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________________ भगवान ही नहीं हुआ, जो केवल परिवर्तित और जाग्रत ही नहीं हुआ, बल्कि जो समय के बाहर जा चुका है, वह गुरुओं का गुरु हो जाता है। अब वह भगवान हो जाता है। तो करता क्या होगा वह गुरुओं का गुरु? यह अवस्था केवल तभी आती है जब गुरु देह छोड़ता है, उसके पहले कभी नहीं। देह में तुम जाग्रत हो सकते हो, देह में रह तुम जान सकते हो कि समय नहीं है। लेकिन देह के पास जैविक घड़ी है। वह भूख अनुभव करता है, और समय के अंतराल के बाद फिर अनुभव करता है भूख-परितृप्ति और भूख; नींद, रोग, स्वास्थ्य। रात में देह को निद्रा में चले जाना होता है, सुबह इसे जगाना होता है। देह की जैविक घड़ी होती है। अत: तीसरे प्रकार का गुरु केवल तभी घटता है जब गुरु सदा के लिए देह छोड़ देता है; जब उसे फिर से देह में नहीं लौटना होता। बुद्ध के पास दो शब्द हैं। पहला है निर्वाण, सम्बोधि। जब बुद्ध सम्बोधि को उपलब्ध हए, तो भी देह में बने रहे। यह थी सम्बोधि, निर्वाण। फिर चालीस वर्ष के पश्चात उन्होंने देह छोड़ दी। इसे वे कहते है परम निर्वाण- 'महापरिनिर्वाण'। फिर वे हो गये गुरुओं के गुरु, और वे बने रहे हैं गुरुओं के गुरु। प्रत्येक गुरु, जब वह स्थायी रूप से देह छोड़ देता है, जब उसे फिर नही लौटना होता, तब वह गुरुओं का गुरु हो जाता है। मोहम्मद, जीसस, महावीर, बुद्ध, पतंजलि, वे प्रत्येक गुरुओं के गुरु हुए और वे निरंतर रूप से गुरुओं को निर्देशित करते रहे हैं न कि शिष्यों को। जब कोई पतंजलि के मार्ग पर जाता हुआ गुरु हो जाता है, तो फौरन पतंजलि के साथ एक सम्पर्क सध जाता है। उनकी आत्मा असीम में तैरती रहती है उस वैयक्तिक चेतना के साथ, जिसे कि भगवान कहा जाता है। जब कभी कोई व्यक्ति पतंजलि के मार्ग का अनुसरण करता हुआ गुरु हो जाता है, संबोधि को उपलब्ध हो जाता है, तो तुरंत उस आदिगुरु के साथ जो कि अब भगवान है, एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। जब कभी कोई बुद्ध का अनुसरण करते हुए सम्बोधि को उपलब्ध होता है, तो कुल एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है;अकस्मात वह बुद्ध के साथ जुड़ जाता है। बुद्ध के साथ जो अब देह में नहीं रहे, जो समय में नहीं रहे और काल में नहीं रहे,लेकिन जो अब भी हैं; उन बुद्ध के साथ जुड़ जाता है जो समग्र समष्टि के साथ एक हो चुके हैं, लेकिन जो अब भी हैं। यह बहुत विरोधाभासी है और समझना बहुत कठिन है क्योंकि हम वह कोई चीज नहीं समझ सकते जो समय के बाहर की होती है। हमारी सारी समझ समय के भीतर होती है; हमारी सारी समझ स्थान से जुड़ी होती है। जब कोई कहता है कि बुद्ध समयातीत और स्थानातीत हैं, तो यह बात हमारी समझ में नहीं आती।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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