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________________ लोग्र कल्पना कर लेते हैं, अत: आशंका गलत नहीं होती है। बहुत बार तुम कल्पना करोगे। और तुम भेद नहीं कर सकते इसका कि क्या वास्तविक है और क्या अवास्तविक है। केवल गुरु बता सकता है, 'हां, चिंतित मत होओ। यह वास्तविक था', या गुरु कह सकता है, 'छोड़ो इसे फेंको इसे। यह मात्र काल्पनिक बात थी।' केवल वही जिसने शिखर को जान लिया और केवल दूर मैदान पर रह कर ही नहीं जाना, वह स्वयं शिखर को पा गया है, केवल वही जो स्वयं शिखर हो गया है, बता सकता है तुम्हें, क्योंकि उसके पास है कसौटी, उसके पास है निष्कर्ष वह कह सकता है, फेंको भी इसे कूड़ाकरकट है यह। केवल तुम्हारी कल्पना है यह।' क्योंकि जब खोजी इन चीजों के बारे में सोचता चला जाता है, तो मन सपने देखना शुरू कर देता है। - बहुत लोग आते हैं मेरे पास उनमें से केवल एक प्रतिशत के पास होती है वास्तविक चीज निन्यानबे प्रतिशत लोग अवास्तविक बातें ले आते हैं। लेकिन यह कठिन होता है उनके लिए निर्णय लेना - कठिन ही नहीं, असंभव। वे नहीं निर्णय कर सकते। अकस्मात ऊर्जा का उफान अनुभव करते हो रीढ़ में, पीठ के मेरुदंड में कैसे तुम इसका निर्णय करोगे कि यह वास्तविक है या अवास्तविक? तुम इसके बारे में बहुत ज्यादा सोचते रहे हो, तुम इसकी आकांक्षा भी करते रहे हो। अचेतन रूप से तुम इसके बीज बोते रहे हो कि ऐसा घटना चाहिए कुंडलिनी जगनी चाहिए। और तुम पढ़ते रहे हो पतंजलि को, और तुम इस बारे में बातें करते रहे हो, और फिर तुम लोगों से मिलते हो जो कहते हैं कि उनकी कुंडलिनी जग गयी है। तुम्हारा अहंकार बीच में चला आता है, और तब हर चीज मिश्रित हो जाती है। अकस्मात एक दिन तुम ऊर्जा का उफान अनुभव करते हो, लेकिन यह मन के निर्माण के सिवाय कुछ नहीं है। मन तुम्हें संतुष्ट करना चाहता है यह कह कर कि, 'चिंतित मत होओ इतने ज्यादा मत होओ चिंतित । जरा देखो। तुम्हारी कुंडलिनी तो जाग गयी।' और यह है मन की कल्पना मात्र तो कौन करेगा निर्णय ? और कैसे करोगे तुम निर्णय? तुम सच को जानते नहीं केवल सत्य का अनुभव कसौटी बन सकता है कि यह सत्य है या कि असत्य यह निर्णय करने के लिए। प्रथम सतोरी के पश्चात गुरु की जरूरत ज्यादा ही होती है। तीन होती हैं सतोरी। पहली सतो तो मात्र झलक है। यह कई बार नशों के द्वारा भी संभव होती है; यह संभव हो जाती है दूसरी बहुत सारी चीजों द्वारा कई बार दुर्घटनाओं द्वारा भी कई बार जब वृक्ष पर चढ़ते हुए, तुम नीचे गिर जाते हो, और यह ऐसा झटका होता है कि मन क्षण भर को ठहर जाता है। तब झलक होती है वहां और तुम इतना सुख-बोध अनुभव करते हो कि तुम देह से बाहर ले जाये जाते हो। तुम कुछ जान लेते हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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