SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लगते। तुम दुःसाध्य हो। तुम फिर आशा बना लेते। तुम कह दोगे, ठीक है तो हम यह जीवन छोड़ सकते हैं। यदि एक अधिक भरपूर जीवन, एक अधिक ज्ञानदार जीवन की संभावना है तो हम इच्छाएं छोड़ सकते हैं। यदि इच्छाएं छोड़ने से आत्यंतिक सत्य और आनंद का शिखर मिलना संभव है, तो हम इच्छाएं छोड़ सकते हैं। लेकिन इन्हें हम केवल बड़ी इच्छा के कारण छोड़ सकते है। तब तुम छोड़ कहां रहे हो? तुम बिलकुल ही नहीं छोड़ रहे। तुम तो बस पुरानी इच्छाओं की जगह नयी इच्छाएं रख रहे हो। और नयी इच्छा कहीं ज्यादा खतरनाक होगी पुरानी इच्छा से क्योंकि पुरानी के प्रति तो तुम निराश हो ही नयी इच्छा के प्रति निराश होने के लिए, जहां कह सको कि ईश्वर व्यर्थ है, जहां कह सको कि स्वर्ग की बात मूर्खतापूर्ण है, जहां तुम कह सको कि सारा भविष्य निरर्थक है, ऐसे बिंदु तक पहुंचने के लिए तुम्हें कुछ और जन्म लेने पड़ सकते है। यह सांसारिक इच्छाओं का प्रश्न नहीं है। यह इच्छा मात्र का प्रश्न है। इच्छा करना ही बंद होना चाहिए। केवल तभी तुम तैयार होते हो, केवल तभी तुम साहस एकत्र करते हो, केवल तभी द्वार खुलता है और तुम अज्ञात में प्रवेश कर सकते हो। अतः पतंजलि का पहला सूत्र: 'अब योग का अनुशासन।' दूसरा प्रश्न: ऐसा कहा जाता है कि योग एक नास्तिकवादी पद्धति है। क्या आप इससे सहमत हैं? योग न तो आस्तिक है और न नास्तिक। योग एक सीधा विज्ञान है। पतंजलि सचमुच अपूर्व हैं, एक चमत्कार है। वे ईश्वर के विषय में कभी बोलते ही नहीं। और यदि उन्होंने एक बार ईश्वर का उल्लेख किया भी है, तब भी वे इतना ही कहते हैं कि ईश्वर परम सत्य तक पहुंचने की विधियों में से एक विधि ही है। और ईश्वर है नहीं । ईश्वर में विश्वास करना पतंजलि के लिए केवल एक उपाय है। क्योंकि ईश्वर में विश्वास करने से प्रार्थना संभव होती है, ईश्वर में विश्वास करने से समर्पण संभव होता है। महत्व समर्पण और प्रार्थना का है, ईश्वर का नहीं। पतंजलि सचमुच अद्भुत हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर ईश्वर में किया गया विश्वास, ईश्वर की धारणा- अनेक विधियों में से एक विधि है सत्य तक पहुंचने की । ईश्वर - प्रणिधान - ईश्वर में विश्वास करना तो केवल एक मार्ग है लेकिन यह अपरिहार्य नहीं है। तुम कुछ और चुन सकते हो बुद्ध
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy