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बनाये रखो कि वे परम काव्य के गणितज्ञ है। वे स्वयं एक विरोधाभास है। लेकिन वे विरोधाभासी भाषा हरगिज प्रयुक्त नहीं करते। कर नहीं सकते। वे बड़ी मजबूत तर्कसंगत पृष्ठभूमि बनाए रखते है। वे विश्लेषण करते, विच्छेदन करते, पर उनका उद्देश्य संश्लेषण है। वे केवल संश्लेषण करने को ही विश्लेषण करते है।
इसलिए पंतजलि ने पश्चिमी मन
ज्यादा प्रभावित किया है। पतंजलि सदैव एक प्रभाव बने रहे है। जहां कहीं उनका नाम पहुंचा है, वे प्रभाव बने रहे, क्योंकि तुम उन्हें आसानी से समझ सकते हो। लेकिन उन्हें समझना ही पर्याप्त नहीं है......।
वे बुद्धि से बातें करते है, पर उनका उद्देश्य, उनका लक्ष्य ह्रदय ही है। वे चाहते हैं कि तुम तर्क के द्वारा तर्क के पार चले जाओ।
ओशो
प्रवचन 1- योग के प्रवेश दवार पर
दिनांक 25 दिसम्बर, 1973;
वुडलैण्ड्स, बम्बई, संध्या।
योगसूत्र:
अथ योगानुशासनम् ।।1।।
अब योग का अनुशासन।
योगक्षितवृत्तिनिरोधः।।2।।
योग मन की समाप्ति है।