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________________ सच्चाई को तुम पैदा नहीं कर सकते। तुम विचारशीलता को पैदा कर सकते हो, लेकिन सच्चाई को कभी नहीं। किसी चीज में समग्र रूप से होना छाया है सच्चाई की। पतंजलि कहते हैं, 'सफलता उनके निकटतम होती है जिनके प्रयत्न प्रगाढ़ और सच्चे होते हैं।' निस्संदेह, प्रगाढ़ और सच्चे कहने की कोई आवश्यकता नहीं। सच्चाई सदा ही प्रगाढ़ होती है। लेकिन पतंजलि क्यों कहते हैं प्रगाढ़ और सच्चे? निश्चित कारण से ही। सच्चाई सदा प्रगाढ़ होती है लेकिन प्रगाढ़ता सदा आवश्यक रूप से ही सच्ची नहीं होती है। तुम किसी चीज में प्रगाढ़ हो सकते हो, पर सच्चे नहीं; शायद तुम सच्चे न हो। इसलिए वे योग्यता जोड़ते हैं, 'प्रगाढ़ और सच्चे' होने की। क्योंकि तुम तुम्हारी गंभीरता में भी प्रगाढ़ हो सकते हो। तुम प्रगाढ़ हो सकते हो तुम्हारे आशिक अस्तित्व सहित भी। तुम एक निश्चित भावदशा में प्रगाढ़ हो सकते हो। तुम तीव्र रूप से प्रगाढ़ हो सकते हो तुम्हारे क्रोध में। तुम प्रगाढ़ हो सकते हो तुम्हारी लालसा में। तुम लाखों चीजों में प्रगाढ़ हो सकते हो और शायद फिर भी तुम सच्चे न होओ, क्योंकि सच्चाई तो होती है तब, जब तुम समग्र रूप से इसमें होते हो। तुम प्रगाढ़ हो सकते हो कामवासना में और शायद तुम सच्चे न होओ, क्योंकि कामवासना जरूरी नहीं कि प्रेम ही हो। तुम शायद बहुत ज्यादा प्रगाढ़ होओ तुम्हारी कामवासना में लेकिन एक बार कामवासना संतुष्ट हो जाती है, तो यह खत्म। चली गयी प्रगाढ़ता। हो सकता है प्रेम बहुत प्रगाढ़ न लगता हो लेकिन यह वास्तविक होता है, तो प्रगाढ़ता बनी रहती है। वस्तुत: यदि तुम सचमुच प्रेम में पड़ते हो तो यह शाश्वतता बन जाती है। यह बात सदा प्रगाढ़ ही होती है। और स्पष्ट भेद समझ लेना, यदि तम प्रगाढ़ होते हो बिना वास्तविकता के, तुम सदा के लिए प्रगाढ़ नहीं हो सकते। केवल क्षणिक तौर पर हो सकते हो तुम प्रगाढ़। जब इच्छा उठती है, तुम प्रगाढ़ होते हो। यह वास्तव में तुम्हारी प्रगाढ़ता नहीं है। यह इच्छा द्वारा लाद दी गयी है। कामवासना उठती है, तुम एक भूख अनुभव करते हो। सारा शरीर, सारी जीव-ऊर्जा एक शइक्त चाहती है, अत: तुम प्रगाढ़ हो जाते हो। लेकिन यह प्रगाढ़ता तुम्हारी नहीं; यह तुम्हारे अस्तित्व से नहीं चली आ रही है। यह तो तुम्हारे चारों ओर की जैविक परत द्वारा मात्र आरोपित हो गयी है। यह तुम्हारे अस्तित्व पर शरीर द्वारा लादी गयी प्रगाढ़ता है। यह केंद्र से नहीं पहुंच रही। यह बाह्य सतह से लादी जा रही है। तुम प्रगाढ़ होओगे और फिर कामवासना के संतुष्ट होने से प्रगाढ़ता चली जायेगी। तब तुम्हें सी की परवाह नहीं रहती। बहुत स्रियों ने मुझे बताया कि वे छली गयी अनुभव करती है। वे स्वयं को इस्तेमाल किया गया अनुभव करती हैं। जब उनके पति उन्हें प्रेम करते है, तो आरंभ में वे इतना प्रेममय अनुभव करते हैं, इतने प्रगाढ़; वे इतनी प्रसन्नता अनुभव करते हैं। लेकिन जिस क्षण कामवासना समाप्त हो जाती है तो पति दूसरी ओर करवट लेकर सो जाते हैं। सी को क्या हो रहा है इस बात की वे बिलकुल
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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