SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभी एक रात, मैं एक किताब पढ़ता था जॉर्ज माइक्स की, और उसने कहा है कि बुडापेस्ट में, हंगरी में, जहां वह पैदा हुआ, एक अंग्रेज महिला उसके प्रेम में पड़ गयी। उसे कुछ ज्यादा प्रेम वगैरह न था, लेकिन वह अभद्र भी नहीं होना चाहता था। इसलिए जब उसने पूछा, 'क्या हम विवाह नहीं कर सकते?' तो वह बोला, 'यह कठिन होगा क्योंकि मेरी मां मुझे ऐसा करने न देगी। और अगर मैं एक विदेशी से विवाह करूं तो वह खुश न होगी।' वह अंग्रेज महिला बहत ज्यादा नाराज हुई। वह बोली, 'क्या? मैं, और विदेशी? मैं विदेशी नहीं हूं। मैं अंग्रेज हूं। तुम हो विदेशी और तुम्हारी मां भी।' माइक्स ने कहा, 'बुडापेस्ट में,हंगरी में, क्या मैं विदेशी हूं?' वह कहने लगी, 'हां। सत्य भूगोल पर निर्भर नहीं करता है।' हर कोई इसी ढंग से सोचता है। मन कोशिश करता है। अपनी इच्छाओं को पूरा करने की; वह सबसे अधिक ऊंचा होने की कोशिश करता है। धर्म हो, जाति हो, देश हो, हर चीज में व्यक्ति को सचेत रहना होता है। केवल तभी तुम अहंकार की इस सूक्ष्म घटना के पार जा सकते हो। 'हेराक्लत्, क्राइस्ट और झेन के वचनों से अंतिम चरण निकट प्रतीत होता है। पतंजलि पहले चरण को भी लगभग असंभव सा बनाते हैं।' -क्योंकि वह दोनों है। वह निकटतम से भी ज्यादा निकट है और वह दूरतम से भी दूर है-यही उपनिषद कहते हैं। वह निकट और दूर दोनों है। उसे होना ही है, अन्यथा कौन होगा दूर? और उसे निकट भी होना है, अन्यथा कौन होगा तुम्हारे निकट? वह तुम्हारी त्वचा को स्पर्श करता है, और वह किन्हीं सीमाओं के पार फैला हुआ है। वह दोनों है। हेराक्लत निकटता पर जोर देते हैं क्योंकि वे एक सरल व्यक्ति हैं। और वे कहते हैं कि वह इतना निकट है कि उसे निकट लाने को कुछ करने की जरूरत नहीं है। वह वहां होता ही है। वह तो तुम्हारे द्वार पर खड़ा ही है; खटखटा रहा है तुम्हारा द्वार, तुम्हारे हृदय के निकट प्रतीक्षा कर रहा है, कुछ नहीं करना है। तुम बस, मौन हो जाना और जरा देखना; केवल शांत, मौन होकर बैठ जाओ और देखो। तुमने उसे कभी नहीं खोया। सत्य निकट है। वास्तव में, यह कहना कि वह निकट है, गलत है क्योंकि तुम्ही सत्य हो। निकटता भी काफी दूर प्रतीत होती है। निकटता भी दर्शाती है कि एक पृथकता है, एक भेद है, एक अंतर है। वह अंतर भी वहां नहीं है; तुम हो वह। उपनिषद कहता है, 'वह तुम्हीं हों-तत्त्वमसि श्वेतकेतु।' तुम वह हो ही।'वह निकट है, ऐसा कहना गलत है क्योंकि उतनी दूरी भी नहीं है वहां। ___ हेराक्लतु और झेन चाहते हैं कि तुम तुरंत छलांग लगा दो, प्रतीक्षा न करो। पतंजलि कहते है कि वह बहुत दूर है। वे भी सही हैं; वह बहुत दूर भी है। और पतंजलि तुम्हें ज्यादा आकर्षित करेंगे, क्योंकि यदि वह इतना निकट है और तुमने उसे पाया नहीं, तो तुम बहुत-बहुत पराजित और उदास अनुभव करोगे। यदि वह इतना निकट है, बस किनारे पर ही, खड़ा ही है तुम्हारे पहलू में, अगर
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy