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________________ हो? क्या मैं पहली सी हूं जिसे तुम चूम रहे हो? क्या मुझसे पहले किसी और सी को तुम्हारा पहला चुंबन दिया जा चुका है? 'नसरुद्दीन बोला, 'हां, पहला और सबसे मधुर।' ___ तुलना तुम्हारे खून में घुस गयी है। जैसी चीज होती है उसके साथ तुम नहीं बने रह सकते। वह सी भी तुलना की मांग कर रही है; वरना चिंता क्या करनी कि यह पहला चुंबन है या कि दूसरा है? हर चुंबन ताजा और कुंआरा होता है। इसका कोई संबंध नहीं होता अतीत के या भविष्य के किसी दूसरे चुंबन के साथ। हर चुंबन की स्वयं में एक सत्ता है। यह अस्तित्व रखता है केवल इसकी एकान्तिकता में ही। यह स्वयं में एक शिखर है, यह एक इकाई है-किसी भी रूप में अतीत या भविष्य के साथ संबंधित नहीं है। पूछना क्यों. क्या यह पहला है? और उस पहले चुंबन में ऐसा कौन-सा सौंदर्य होता है? क्या दूसरा या तीसरा चुंबन उतना सुंदर नहीं हो सकता? लेकिन मन चाहता है तुलना करना। मन क्यों चाहता है तुलना करना? क्योंकि तुलना द्वारा अहंकार पोषित होता है। यह अनुभव कर सकता है, 'मैं हूं पहली सी। यह है पहला चुंबन।' तुम्हारे लिए चुंबन का महत्व नहीं, चुंबन की गुणवता का महत्व नहीं। इस क्षण चुंबन ने हृदय में एक द्वार खोल दिया है, लेकिन तुम्हें उसमें दिलचस्पी नहीं है। तुम्हारे लिए वह कुछ है ही नहीं। तुम रुचि रखते हो इसमें कि यह पहला है या नहीं? अहंकार सदा तुलना में रुचि रखता है और अस्तित्व किसी तुलना को जानता नहीं। और हेराक्ल तथा पतंजलि जैसे लोग अस्तित्व में रहते है, मन में नहीं। उनकी तुलना मत करना। बहुत लोग मेरे पास आते है और वे पूछते है, 'कौन ज्यादा महान है, बुद्ध या क्राइस्ट?' कितनी मूर्खता है पूछना। मैं उनसे कहता हूं बुद्ध ज्यादा महान है क्राइस्ट से और क्राइस्ट ज्यादा महान हैं बुद्ध से। क्यों तुम किये जाते हो तुलना? कोई सूक्ष्म चीज वहां काम कर रही है। अगर तुम क्राइस्ट के अनुयायी हो, तो तुम क्राइस्ट को सबसे महान कहना चाहोगे। क्योंकि क्राइस्ट सब हों तो तुम महान हो सकते हो। यह तुम्हारे अपने अहंकार की परिपूर्णता है। कैसे तुम्हारा गुरु सबसे महान नहीं हो सकता? उसे होना ही है क्योंकि तुम इतने महान शिष्य हो! और अगर क्राइस्ट सबसे महान नहीं, तो कहां जायेंगे, क्या करेंगे ईसाई? अगर बुद्ध सबसे महान न हों, तब क्या होगा बौद्धों के अहंकार का 2: प्रत्येक जाति, प्रत्येक धर्म, प्रत्येक देश, स्वयं को सबसे अधिक महान समझता है इसलिए नहीं कि कोई देश महान होता है; इसलिए नहीं कि कोई जाति महान होती है। इस अस्तित्व में तो हर चीज महानतम है। अस्तित्व केवल महानतम का निर्माण करता है। हर जीव बेजोड़ है। लेकिन मन को यह बात जंचती नहीं क्योंकि तब तो महानता एक सामान्य सी बात हो जाती है। हर कोई महान है! तब इसका लाभ क्या मे किसी को ज्यादा नीचे होना चाहिए। पदानक्रम निर्मित करना पड़ता
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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