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________________ समय में ध्यान करता हूं और फिर खत्म।' नहीं, ध्यान को तुम्हारे लिए चौबीस घंटे का सातत्य बनना होता है। जो कुछ भी तुम करो, ध्यान को सतत वहां पृष्ठभूमि में होना होता है। ऊर्जा की आवश्यकता होगी, तुम्हारी समस्त ऊर्जा की आवश्यकता होगी। और अब कुछ और बातें समझ लेनी हैं। अगर तुम्हारी सारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, तो कामवासना अपने आप तिरोहित हो जाती है क्योंकि इस पर नष्ट करने को तुम्हारे पास ऊर्जा नहीं है। ब्रह्मचर्य पतंजलि के लिए कोई अनुशासन नहीं है। यह एक परिणाम है। तुम तुम्हारी समग्र ऊर्जा आध्यात्मिक अभ्यास में लगा देते हो, तो तुम्हारे पास कामवासना के लिए कोई ऊर्जा नहीं बची रहती। और ऐसा साधारण जीवन में भी घटता है। किसी बड़े चित्रकार को देखो, वह सी को पूरी तरह भूल जाता है। जब वह चित्र बना रहा होता है तो उसके मन में कामवासना नहीं होती, क्योंकि उसकी सारी ऊर्जा चित्र में संलग्र रहती है। कामवासना के लिए उसके पास कोई अतिरिका ऊर्जा नहीं है। कोई महान कवि, महान गायक, नृत्यकार जो अपनी प्रतिबद्धता में पूर्णतया डूबा होता है बिना किसी प्रयास के ब्रह्मचर्य पा लेता है। ब्रह्मचर्य के लिए उसके पास कोई अनुशासन नहीं है। कामवासना अतिरिक्त ऊर्जा है; काम एक सुरक्षा–साधन है। जब तुम्हारे पास बहुत ऊर्जा होती है और तुम इसके साथ कुछ नहीं कर सकते, तो प्रकृति ने सेफ्टी वॉल्व बनाया है, एक सुरक्षा की व्यवस्था, ताकि इसे तुम बाहर फेंक सको, तुम इसे मुका कर सको; अन्यथा तुम पागल हो जाओगे या फूट पड़ोगे। तुम विस्फोटित हो जाओगे। और अगर तुम इसे दबाने की कोशिश करते हो, तो भी तुम पागल हो जाओगे क्योंकि इसे दबाना मदद न देगा। इसे आवश्यकता है रूपांतरण की। और वह रूपांतरण समग्र प्रतिबद्धता द्वारा आता है। एक योद्धा, अगर वह वस्तुत: योद्धा है-एक अपराजेय योद्धा, वह कामवासना से परे होगा। उसकी सारी ऊर्जा कहीं और लगी है। कहानी है। एक महान दार्शनिक था, विचारक, जिसका नाम था वाचस्पति। वह अपने अध्ययन में बहुत ज्यादा अंतर्गस्त था। एक दिन उसके पिता ने उससे कहा,' अब मैं बूढ़ा हो चला और मैं नहीं जानता कि कब किस क्षण मर जाऊं। और तुम मेरे इकलौते बेटे हो और मैं चाहता हूं तुम विवाहित होओ।' वाचस्पति अध्ययन में इतना ज्यादा डूबा हुआ था कि वह बोला, 'ठीक है', यह सुने बगैर कि उसके पिता क्या कह रहे है। तो उसका विवाह हुआ, पर वह बिलकुल भूला रहा कि उसकी पत्नी थी, इतना डूबा हुआ था वह अपनी अध्ययनशीलता में। और यह केवल भारत में घट सकता है; यह कहीं और नहीं घट सकता। पत्नी उससे इतना अधिक प्रेम करती थी कि वह उसे अड़चन न देना चाहती। तो यह कहा जाता है कि बारह वर्ष गुजर गये। वह छाया की भांति उसकी सेवा करती, हर बात का ध्यान रखती, लेकिन वह जरा भी शांति भंग न करती। वह न कहती, 'मैं हूं यहां, और क्या कर रहे हो तुम?' वाचस्पति लगातार एक व्याख्या लिख रहा था जितनी व्याख्याएं लिखी गयी हैं, उनमें से एक महानतम व्याख्या। वह बादरायण के ब्रह्म-सूत्र पर भाष्य लिख रहा था और वह उसमें डूबा हुआ था इतना ज्यादा, इतनी
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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