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________________ तुमने उसे काट दिया है जो व्यक्त हुआ था। उस चीज को काट देना सरल है जिसकी अभिव्यक्ति हुई हो। सारे वृक्षों को काट देना आसान होता है। तुम बगीचे में जा सकते हो और सारे लॉन को, घास को पूरी तरह उखाड़ सकते हो; तुम हर चीज को नष्ट कर सकते हो। पर दो सप्ताह के भीतर ही घास फिर से बढ़ जायेगी क्योंकि तुमने केवल उसे उखाड़ा था, जो प्रकट हुआ था। जो बीज मिट्टी में पड़े हुए हैं उन्हें तुमने अब तक छुआ नहीं है। यही करना होता है तीसरी अवस्था में। असंप्रज्ञात समाधि अब भी 'सबीज' है, बीजों सहित है। और विधियां मौजूद हैं उन बीजों को जलाने की, अग्रि निर्मित करने की वह अग्रि जिसकी चर्चा हेराक्लत करते हैं, कि अग्रि कैसे निर्मित करें और अचेतन बीजों को जला दें। जब वे भी मिट जाते, तब भूमि नितांत शुद्ध होती है; कुछ भी नहीं उदित हो सकता इसमें से। फिर कोई जन्म नहीं, कोई मृत्य नहीं। तब सारा चक्र तुम्हारे लिए थम जाता है; तुम चक्र के बाहर गिर चुके होते हो। और समाज से बाहर निकल आना कारगर न होगा, जब तक कि तुम भव-चक्र से ही बाहर न आ जाओ। तब तुम एक संपूर्ण समाप्ति बनते हो। बुद्ध संपूर्ण रूप से अलग हुए हैं, संपूर्ण समाप्ति हैं। महावीर, पतंजलि संपूर्ण समाप्ति हैं। वे व्यवस्था या समाज से बाहर नहीं हुए हैं, वे जीवन और मृत्यु के चक्कर से ही बाहर हो गये हैं। पर तभी यह घटता है जब सारे बीज जल गये हों। अंतिम है निर्बीज समाधि-बीजरहित।' असंप्रज्ञात समाधि में मानसिक क्रिया की समाप्ति होती है और मन केवल अप्रकट संस्कारों को धारण किये रहता है।' विदेहियो और प्रकृतिलयों को असंप्रज्ञात समाधि उपलब्ध होती है क्योंकि अपने पिछले जन्म में उन्होने अपने शरीरों के साथ तादात्म्य बनाना समाप्त कर दिया था। वे फिर जन्म लेते हैं क्योंकि इच्छा के बीज बने रहते हैं। बुद्ध भी जन्म लेते हैं। अपने पिछले जन्म में वे असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध हो चुके थे, लेकिन बीज मौजूद थे। उन्हें एक बार और आना ही था। महावीर भी जन्म लेते हैं, बीज उन्हें ले आते हैं। लेकिन यह अंतिम जन्म ही होता है।'असंप्रज्ञात समाधि के पश्चात केवल एक जीवन संभव है। लेकिन तब जीवन की गुणवत्ता संपूर्णतया भिन्न होगी क्योंकि यह व्यक्ति देह के साथ तादात्थ नहीं बनायेगा। और इस व्यक्ति को वस्तुत: कुछ करना नहीं. होता क्योंकि मन की क्रिया समाप्त हो चुकी है। तो क्या करेगा वह? इस जिंदगी की ही जरूरत किसलिए है? उसे तो बस उन बीजों को व्यक्त होने देना है, और वह साक्षी बना रहेगा। यही है अग्रि। एक व्यक्ति आया और बुद्ध पर यूक दिया; वह क्रोध में था। बुद्ध ने अपना चेहरा पोंछा और पूछा, 'तुम्हें और क्या कहना है?' वह आदमी नहीं समझ सका। वह सचमुच क्रोध में था, लाल
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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