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________________ होओ, और यह अनुभूति बनाये रहो कि वे परम काव्य ओ, और यह अनभति बनाये रहो कि वे परम काव्य के गणितज्ञ हैं। वे स्वयं एक विरोधाभास हैं, लेकिन वे विरोधाभासी भाषा हरगिज प्रयुक्त नहीं करते। कर नहीं सकते। वे बड़ी मजबूत तर्कसंगत पृष्ठभूमि बनाये रहते हैं। वे विश्लेषण करते,विच्छेदन करते, पर उनका उद्देश्य संश्लेषण है। वे केवल संश्लेषण करने को ही विश्लेषण करते हैं। तो हमेशा ध्यान रखना कि ध्येय तो है परम सत्य तक पहुंचना, केवल मार्ग ही है वैज्ञानिक। इसलिए मार्ग द्वारा दिग्भ्रमित मत होना। इसलिए पतंजलि ने पश्चिमी मन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। पतंजलि सदैव एक प्रभाव बने रहे हैं। जहां कहीं उनका पहुंचा है, वे प्रभाव बने रहे क्योंकि तुम उन्हें आसानी से समझ सकते हो। लेकिन उन्हें समझना ही पर्याप्त नहीं है। उन्हें समझना उतना ही आसान है जितना कि आइंस्टीन को समझना। वे बुदधि से बातें करते हैं, पर उनका लक्ष्य हृदय ही है। इसे तुम्हें खयाल में लेना है। हम एक खतरनाक क्षेत्र में बढ़ रहे होंगे। अगर तुम भूल जाते हो कि वे एक कवि भी हैं, तो तुम मार्ग से बहक जाओगे। तब तुम उनकी शब्दावली को, उनकी भाषा को, उनके तर्क को बहुत जड़ता से पकड़ लोगे और तुम उनके ध्येय को भूल जाओगे। वे चाहते हैं कि तर्क के द्वारा ही तुम तर्क के पार चले जाओ। यह एक संभावना है। तुम तर्क को इतने गहरे तौर पर खींच सकते हो कि तुम उसके पार हो जाओ। तुम तर्क द्वारा चलते हो, तुम उसे टालते नहीं। तुम तर्क का उपयोग सीढ़ी की तरह करते हो तर्क से पार जाने के लिए। अब उनके शब्दों पर ध्यान दो। हर शब्द को विश्लेषित करना है। संप्रज्ञात समाधि वह समाधि है जो वितर्क विचार आनंद और अस्मिता के भाव से युक्त होती है? वे समाधि को, उस परम सत्य को, दो चरणों में बांट देते हैं। परम सत्य बांटा नहीं जा सकता। यह तो अविभाज्य है,और वस्तुत: कोई चरण है ही नहीं। लेकिन मन को, साधक को सहायता देने के लिए ही वे पहले इसे दो चरणों में बांट देते हैं। पहले चरण को वे नाम देते हैं संप्रज्ञात समाधि। यह वह समाधि है, जिसमें मन अपनी शुद्धता में सुरक्षित रहता है। __इस पहले चरण में, मन को परिष्कृत और शुद्ध होना पड़ता है। पतंजलि कहते हैं, तुम इसे एकदम से गिरा नहीं सकते। इसे गिराना असंभव है क्योंकि अशुद्धियों की प्रवृत्ति है चिपकने की। तुम इसे केवल तभी गिरा सकते हो जब मन बिलकुल शुद्ध होता है इतना शुद्ध, इतना सूक्ष्म कि उसकी कोई प्रवृत्ति नहीं रहती चिपकने
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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