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________________ क्या वैराग्य अनासक्ति या निराकांक्ष स्वयं में पर्याप्त नहीं है किसी को सांसारिक बंधन से मुका करने के लिए? तब क्या प्रयोजन हआ योग के अनुशासन का अभ्यास का प्रयास और कार्यकलाप का? वराग्य पर्याप्त है. निराकांक्षा पर्याप्त है। फिर किसी अनुशासन की आवश्यकता न रही। लेकिन कहां है वह निराकांक्ष?यह है नही। इसे मदद देने को अनुशासन की आवश्यकता है। अनुशासन आवश्यक है केवल इसीलिए कि निराकांक्षा अपनी संपूर्णता में तुम्हारे भीतर नहीं है। अगर निराकांक्षा वहां होती है, तब तो किसी चीज का अभ्यास करने की कोई बात ही नही। किसी अनुशासन की जरूरत नहीं। तुम मुझे सुनने नहीं आओगे, तुम पतंजलि के सूत्रों को नहीं पढ़ोगे। अगर इच्छा रहितता, निराकांक्ष पूर्ण है, तो पतंजलि निरर्थक है। अपना समय पतंजलि के सूत्रों में क्यों गवाते हो? फिर मै निरर्थक हं। तो क्यो आते हो मेरे पास भू: तुम एक अनुशासन की तलाश में हो। तुम किसी अनुशासन की तलाश में भटक रहे हो, जो तुम्हें रूपांतरित कर दे। तुम शिष्य हो, और शिष्य का अर्थ ही है वह व्यक्ति, जो अनुशासन की खोज में है। और तुम स्वयं को धोखा मत दो। अगर तुम कृष्ण मूर्ति के पास भी जाते हो, तो तुम अनुशासन की खोज में हो। क्योंकि वह जो जरूरत में नहीं है, जायेगा नहीं! चाहे कृष्णमूर्ति कहते है कि किसी को भी शिष्य होने की जरूरत नहीं; किसी अनुशासन की आवश्यकता नहीं; तो तुम क्यों जाते हो वहां? उनके संकल्प के ये शब्द तुम्हारा अनुशासन बन जायेंगे। तुम उनके आसपास एक ढांचा निर्मित कर लोगे। और तुम उस ढांचे का अनुसरणकरना आरंभ कर दोगे निराकांक्षा नहीं है भीतर, इसलिए तुम तकलीफ में हो। और कोई व्यक्ति दुख भोगना पसंद नहीं करता है, हर कोई दुख के पार हो जाना चाहता है। दुख का अतिक्रमण कैसे करें? यही है, जिसमें अनुशासन तुम्हारी मदद करेगा। अनुशासनकेवलएकसाधनहैछलांगलगानेकेलिएतुम्हेंतैयारकरनेका-इच्छारहिततामेंछलांग लगाने के लिए। अनुशासन का अर्थ है अभ्यास। तुम अभी तैयार नहीं हो। तुम्हारे पास बहुत स्थूल यंत्र है। तुम्हारा शरीर और तुम्हारा मन, वे स्थूल हैं। वे सूक्ष्म को ग्रहण नहीं कर सकते। तुम समस्वरित नहीं हो। सूक्ष्म को पक्कने के लिए तुम्हें तालमेल बिठाना होगा। तुम्हारी स्थूलता मिटानी होगी। इसे खयाल में लेना : सूक्ष्म को ग्रहण करने के लिए तुम्हें सूक्ष्म होना होगा। जैसे तुम हो, शायद ईश्वर तुम्हारे आस पास होता है, लेकिन तुम इससे सपर्क नहीं बना सकते।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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