SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुत लोग बस इसी की प्रतीक्षा करते कि कब कबीर कोई चीज लायेंगे। यह मात्र कोई चीज न होती, उपयोगी वस्तु ही न होती, यह तो कबीर के पास से आयी होती। स्वयं चीज में एक आंतरिक गुण होता था। यह कबीर के हाथों में से आयी थी। कबीर ने इसका स्पर्श किया था और कबीर इसके आसपास नाचते रहे थे जब वे इसे बन रहे थे। और वे निरंतर स्मरण कर रहे थे परमात्मा का। तो वह चीज, कपड़ा या पोशाक या कोई भी चीज पनीत हो जाती, पावन। बात परिमाण की न थी; गुण की थी। शिल्पगत पहलू द्वितीय था, मानवीय पहलू प्राथमिक बात थी। अत: पूरब में, बाहरी संसार में भी उन्होंने एक ढांचे की व्यवस्था की हुई थी, जो तुम्हारी मदद करता जब तुम भीतर की ओर मुड़ते, जिससे तुम उस आयाम से पूरी तरह अपरिचित न होते थे। कुछ तो था जो तुम जानते। कुछ मार्गदर्शक दिशाएं तुम्हारे पास का कोई प्रकाश। तुम समग्र अंधकार में नहीं सरक रहे होते थे। और बाहरी संबंधों में होने वाली यह आस्था हर कहीं थी। एक पति विश्वास ही न कर सकता था कि उसकी पत्नी विश्वासघात कर सकती है। यह करीब-करीब असंभव ही था। और अगर पति मर जाता, तो पत्नी उसके साथ मर सकती थी क्योंकि जीवन ऐसी सम्मिलित होने की घटना थी। उसकी मृत्यु के बाद, यह अर्थहीन होता उसके बिना जीना, जिसके साथ जीवन इतनी सम्मिलित बन चुका होता था। __ यह घटना आगे चल कर कुरूप हो गयी, पर आरंभ में यह सुंदरतम चीजों में से एक थी जो कभी भी इस धरती पर घटी है। तुम किसी को प्रेम करते थे और वह समाप्त हो गया, तो तुमने उसी के साथ ही समाप्त हो जाना चाहा। उसके बिना रहना तो मृत्यु से भी ज्यादा बुरा होता। मृत्यु ज्यादा अच्छी और चुनने लायक थी। ऐसी थी आस्था, जो बाहर की चीजों में भी बनी रहती थी। पत्नी और पति के बीच का संबंध एक बाहरी चीज ही है।'आस समाज श्रद्धा के, आस्था के, प्रामाणिक साझेदारी के आसपास गतिमान हो रहा था। और यह सहायक था। जब भीतर बढ़ने का समय आता, तो ये सारी चीजें मदद करती व्यक्ति के सरलता से दीक्षित होने में, किसी के प्रति श्रदधा रखने में, समर्पण करने में। लड़ाई, संघर्ष, आक्रामकता, ये सब बाधाएं हैं। उन्हें साथ मत लिये रहो। जब तुम भीतर की ओर मुड़ते हो, तो उन्हें द्वार पर छोड आओ। यदि तुम उन्हें पास रखे रहते हो, तुम भीतर के मंदिर को खो दोगे; तुम इस तक कभी न पहुंचोगे। इन चीजों के साथ तुम भीतर की ओर नहीं बढ़ सकते। प्रश्न-3
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy