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________________ वे समस्याग्रस्त नहीं हैं। वे तुममें प्रवेश कर सकते हैं। वे स्वयं को तुम्हारी स्थिति में रख सकते हैं और फिर भी साक्षी बने रह सकते हैं। वे जो संसार में होते हैं, संसार को नहीं समझ सकते हैं। केवल वे ही जो इसके पार चले गये हैं, इसे समझते हैं। इसलिए जो कुछ भी तुम समझना चाहते हो, उसके पार जाओ। यह विरोधाभासी जान पड़ता है। कुछ भी जो तुम जानना चाहते हो उसके पार जाओ; केवल तभी बोध घटित होगा। अगर तुम किसी भी बात में ग्रसित हो कर प्रवेश करते हो, तो भले ही ज्यादा जानकारी इकट्ठी कर लो, लेकिन एक प्रज्ञावान व्यक्ति नहीं बनोगे। तुम क्षण–प्रतिक्षण इसका अभ्यास कर सकते हो। तुम दोनों हो सकते हो- अभिनेता होओ और दर्शक भी। जब तुम क्रोधित होते हो, तब तुम मन को कहीं स्थानांतरित कर सकते हो, जिससे तुम क्रोध से अलग हो जाते हो। यह एक गहन कला है। अगर तुम प्रयास करो, तुम इसे कर पाओगे। तुम मन को स्थानांतरित कर सकते हो। एक क्षण के लिए तुम क्रोधित हो सकते हो। फिर अलग हो जाओ और क्रोध को देखो। तुम्हारे अपने चेहरे को दर्पण में देखो। देखो उसे जो तुम कर रहे हो, देखो उसे जो तुम्हारे चारों ओर घट रहा है, देखो जो तुमने दूसरों के प्रति किया है और किस तरह वे प्रतिक्रिया कर रहे हैं। क्षण भर को देखो, फिर क्रोधित हो जाओ; क्रोध में सरक जाओ। फिर दोबारा निरीक्षक बन जाओ। यह किया जा सकता है, लेकिन फिर बहुत गहरे अभ्यास की जरूरत होगी। इसे आजमाओ। जब खा रहे होओ, एक क्षण को खाने वाले ही बन जाना। उसमें पूरा रस लेना। भोजन ही बन जाना,भोजन करना ही बन जाना। भूल जाना कि कोई ऐसा भी है जो इसका निरीक्षण कर सकता है। जब तुम इसमें काफी सरक चुके होते हो, तब एक क्षण को हट जाना। खाते ही जाना पर इसकी ओर देखना शुरू करते हुए- भोजन है, भोजनकर्ता है, और तुम अलग खड़े इसे देख रहे हो। जल्दी ही तम दक्ष हो जाओगे, और तम मन के गियर्स बदल पाओगे- अभिनेता से दर्शक होने तक के, भाग लेने वाले से प्रेक्षक होने तक के। तब यह तुम्हारे सामने उद्घाटित हो जायेगा कि भाग लेने के द्वारा कुछ नहीं जाना है, केवल निरीक्षण द्वारा ही चीजें उद्घाटित होती हैं और ज्ञात होती है। इसीलिए जिन्होंने संसार छोड़ दिया है वे मार्गदर्शक बन गये हैं। वे जो पार चले गये हैं, सद्गुरु बन गये हैं। फ्रायड अपने शिष्यों को अलगावपूर्ण बने रहने के लिए कहता था। लेकिन यह उनके लिए बहुत मुश्किल था। क्योंकि फ्रायड के अनुयायी-वे मनोविश्लेषक, वे व्यक्ति न थे जो पार हो गये थे। वे संसार में रहते थे। वे विशेषज्ञ मात्र थे। लेकिन फ्रायड ने भी उन्हें सुझाव दिया कि जब रोगियों की सुन रहे होते हो, उसकी जो बीमार है, मानसिक रूप से बीमार है, तो मनोचिकित्सक को अलग बने
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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