SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक बच्चा नहीं समझ सकता बचपन क्या है। जब बचपन खो चुका हो, तुम पीछे देख सकते हो और समझ सकते हो। युवा नहीं समझ सकता यौवन क्या है। केवल जब तुम बूढ़े हो चुके होते हो और पीछे देखने के योग्य होते हो, विलग, दूर, तब तुम उसे समझ पाओगे। जो कुछ भी समझा जाता है, परे हो जाने के द्वारा ही समझा जाता है। अतिक्रमण, पार हो जाना सारी समझ का आधार है। इसीलिए ऐसा हर रोज होता है कि कोई दूसरा जो मसीबत में होता है तो तुम उसे सलाह, अच्छी सलाह दे सकते हो, पर अगर तुम उसी मुसीबत में हो, तो तुम वही अच्छी सलाह स्वयं को नहीं दे सकते। अगर कोई दूसरा मुसीबत में होता है तो तुम्हारे पास देखने को, निरीक्षण करने को एक दूरी होती है। तुम साक्षी हो सकते हो, तुम अच्छी सलाह दे सकते हो। लेकिन जब तुम उसी मुसीबत में होते हो, तो तुम उतने ज्यादा सक्षम न होओगे। तुम सक्षम हो सकते हो अगर तुम तब भी अलग रह सको। तुम सक्षम हो सकते हो अगर तब भी तुम समस्या को यूं देख सको जैसे कि समस्या तुम्हारी नहीं है; जैसे कि तुम बाहर हो, पहाड़ी पर खड़े हुए नीचे देख रहे हो। कोई भी समस्या हल हो सकती है यदि एक क्षण के लिए भी तुम उससे बाहर होते हो और उसे साक्षी की भांति देख सकते हो। साक्षीभाव हर चीज सुलझा देता है। लेकिन जब तुम किसी अवस्था में गहन रूप से स्थित होते हो तो साक्षी होना कठिन होता है। तुम इतना ज्यादा तादात्म्य बना लेते हो। जब तुम क्रोधित हो जाते हो, तब तुम क्रोध बन जाते हो। कोई पीछे नहीं रहा है जो देख सके, निरीक्षण कर सके, ध्यान से देख सके, निर्णय ले सके। कोई पीछे नहीं रह गया है। जब तुम पूर्णतया कामवासना में सरक जाते हो, तब कोई केंद्र वहां ऐसा नहीं रहता जो अंतर्ग्रस्त न हो। उपनिषदों में यह कहा गया है कि वह व्यक्ति जो स्वयं को ध्यान से देख रहा है, एक वृक्ष की भांति है, जहां दो पक्षी बैठे है। एक पक्षी कूद रहा है, आनन्द मना रहा है, खा रहा है, गा रहा है। और दूसरा पक्षी बस, वृक्ष के शिखर पर बैठा दूसरे पक्षी को देख भर रहा है। अगर तुम साक्षी व्यक्तित्व बना सकते हो, जो ऊपर बना रहता है और नीचे चल रहे नाटक को देखता चला जाता है जिसमें तुम अभिनेता हो, जिसमें तुम नाचते और कूदते हो, गाते और बोलते हो, सोचते हो और आवेष्टित हो जाते हो; अगर तममें गहरे बैठा हआ कोई इस नाटक को देखता रह सकता है, अगर तुम ऐसी दशा में हो सकते हो जहां तुम रंगमंच पर अभिनेता की भांति अभिनय कर रहे हो और साथ ही साथ दर्शकों में बैठे हुए ध्यान से देख रहे हो; यदि तुम अभिनेता और दर्शक दोनों हो सकते हो, तब साक्षी का उदय हुआ है। यह साक्षी तुम्हें जानने के, समझने के, विवेक पाने के योग्य बना देगा। इसलिए यह विरोधाभासी लगता है। अगर तुम बुद्ध के पास जाते हो, तो वे तुम्हारी समस्याओं में गहरे उतर सकते हैं। इसलिए नहीं कि वे समस्या में पड़े है, बल्कि केवल इसलिए कि
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy