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________________ चाहो, तो तुम खेल की तरह उसमें उतर सकते हो, पर इच्छा की भांति नहीं। तब उसके साथ कोई ग्रस्तता नहीं रहती क्योंकि तुम उस पर आश्रित नहीं होते हो। एक दिन वृक्ष के नीचे बैठी। एकदम प्रातःकाल में जब सूर्य अभी उदय नहीं हुआ है, क्योंकि सूर्योदय होने के बाद तुम्हारा शरीर तरंगायित होता है, और भीतर शांति बनी रहनी कठिन होती है। इसलिए पूरब हमेशा सूर्योदय से पहले ध्यान करता रहा है। वे इस समय को ब्रह्ममुहूर्त कहते हैंदिव्यता के क्षण। और वे ठीक हैं, क्योंकि सूर्य के साथ ऊर्जाएं उठती हैं और वे पुराने ढांचे में प्रवाहित होने लगती हैं, जिसे तुम निर्मित कर चुके हो। ____एकदम सुबह जब सूर्य अभी क्षितिज पर नहीं आया है, हर चीज मौन है और प्रकृति गहरी नींद सोयी है-वृक्ष सोये है, पक्षी सोये हैं, सारा संसार सोया हुआ है, तुम्हारा शरीर भी भीतर सुप्त है। तुम वृक्ष के नीचे बैठने आ पहुंचे हो, और हर चीज मौन है। बस, यहीं इसी क्षण में होने का प्रयत्न करो। कुछ मत करो, ध्यान भी नहीं। कोई चेष्टा मत करो। बस अपनी आखें बंद कर लो और प्रकृति के मौन में, मौन बने रहो। अचानक तुम्हें वही झलक मिलेगी जो तुम्हारे पास आ रही थी कामवासना द्वारा। या उससे भी बड़ी कोई झलक, कहीं अधिक गहरी। अचानक तुम अनुभव करोगे भीतर से ऊर्जा का एक तेज प्रवाह आ रहा है। और अब तुम धोखा नहीं खा सकते क्योंकि वहा दूसरा और कोई नहीं है, अत: यह निश्चित तौर पर तुमसे आ रहा है। यह भीतर से प्रवाहित हो रहा है। कोई दूसरा तुम्हें नहीं दे रहा है इसे, तुम इसे दे रहे हो स्वय को। लेकिन एक परिस्थिति की आवश्यकता है-एक मौन। ऊर्जा उत्तेजना में न रहे। तुम कुछ नहीं कर रहे हो, बस वहां हो वृक्ष के नीचे, और तुम वह झलक पा जाओगे। और यह वस्तुत: ऐंद्रिक सुख नहीं होगा। यह प्रसन्नता होगी क्योंकि अब तुम सम्यक स्रोत की ओर देख रहे हो। सम्यक दिशा की ओर। एक बार तुम इसे जान लेते हो, फिर तुम तुरंत पहचान लोगे कि कामवासना में दूसरा दर्पण मात्र था, तुम उसमे बस प्रतिबिंबित हुए थे। और तुम दर्पण थे दूसरे के लिए। तुम एक-दूसरे की सहायता कर रहे थे वर्तमान में उतरने के लिए, विचार से घिरे चित्त से दूर हट कर निर्विचार अवस्था में पहुंचने के लिए। मन जितना ज्यादा शोरगुल से भरा हआ होता है, उतना ज्यादा कामवासना का आकर्षण होता है। पूरब में काम कभी भी ऐसी सनक न था जैसा यह पश्चिम में बन गया है। फिल्में, कहानियां, उपन्यास, कविता, पत्रिकाएं हर चीज यौनग्रस्त बन गयी है। तुम कोई चीज नहीं बेच सकते जब तक कि यौनाकर्षण को निर्मित न कर लो। अगर तुम्हें कार बेचनी होती है, तो तुम उसे केवल कामोत्तेजेक वस्तु की भांति बेच सकते हो। अगर तुम टूथपेस्ट बेचना चाहते हो, तो तुम उसे केवल यौनाकर्षण द्वारा बेच सकते हो। कामवासना के बिना कुछ नहीं बेचा जा सकता। ऐसा जान पड़ता है कि केवल कामवासना का ही बाजार है, महत्व है;दुसरी किसी चीज का नहीं!
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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