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________________ आवश्यकता होती है। लेकिन पतंजलि इसी के लिए कहते हैं। इसलिए वे अपने वैराग्य को, इच्छारहितता को बांट लेते हैं, दो चरणों में। अब हम सूत्रों में प्रवेश करेंगे। वैराग्य निराकांक्षा की वशीकार संज्ञा नामक पहली अवस्था है- ऐंद्रिक सुखों की तृष्णा मएं सचेतन प्रयास दवारा भोगासक्ति की समाप्ति। बहुत सारी चीजें अंतर्निहित हैं और समझनी पड़ेगी। स्व-इंद्रिय-सुख में लिप्तता। तुम ऐंइद्रक सुख की मांग क्यों करते हो? क्यों मन सदा इंद्रिय भोगों के बारे में सोचता रहता है। क्यों तुम बारबार भोगासक्ति के उसी ढांचे में सरकते रहते हो? पतंजलि के लिए, और उन सबके लिए जिन्होंने जाना है, कारण यह है कि तुम भीतर आनंदित नहीं होते हो, इसलिए ऐंद्रिक सुख के लिए इच्छा होती है। सुखोसुख मन का अर्थ है कि जैसे तुम हो, अपने भीतर, तुम आनंदित नहीं हो। इसीलिए तुम सुख को कहीं और ही खोजते चले जाते हो। कोई व्यक्ति जो दुखी है, इच्छाओं में सरकने को विवश है। इच्छा दुखी मन के लिए सुख खोजने का एक ढंग है। बेशक, यह मन कहीं सुख नहीं पा सकता। ज्यादा से ज्यादा यह थोड़ी झलक पा सकता है। वे झलकियां सुख की भाति प्रतीत होती है। सुख का अर्थ होता है, प्रसन्नता की झलकियां। और यह भ्रामकता है कि सुख खोजने वाला मन सोचता है कि ये झलकियां और सख कहीं और से, बाहर से आ रहे हैं। लेकिन वे हमेशा भीतर से आते हैं। समझने की कोशिश करो-तुम किसी के प्रेम में पड़े हो, तो तुम कामवासना में सरकते हो। कामवासना -तुम्हें सुख की झलक देती है, यह तुम्हें प्रसन्नता की झलक देती है। क्षण भर के लिए तुम विश्राम अनुभव करते हो। सारे दुख मिट गये हैं,सारी मानसिक यंत्रणा अब नहीं रही। एक क्षण के लिए तुम अभी और यहीं हो। तुम हर चीज भूल गये हो। एक क्षण के लिए वहां कोई अतीत नहीं और कोई भविष्य नहीं। चूंकि वहां कोई अतीत नहीं और कोई भविष्य नहीं, और एक क्षण के लिए तुम अभी और यहीं हो, ऊर्जा तुम्हारे भीतर से प्रवाहित होती है। इस क्षण में तुम्हारी आंतरिक आत्मा प्रवाहित होती है, और तुम्हें सुख की झलक मिलती है। लेकिन तुम सोचते हो कि वह झलक साथी से आ रही है-स्त्री से या पुरुष से। वह पुरुष या सी से नहीं आ रही है। वह तुम्हारे भीतर से आ रही है। दूसरे ने तो मदद भर की है तुम्हें वर्तमान में उतरने के लिए। दूसरे ने तो केवल मदद की है तुम्हें इस क्षण की वर्तमानता में आने के लिए। अगर तुम बिना कामवासना के इस वर्तमान क्षण में कते हो, धीरे-धीरे कामवासना गैर-जरूरी हो जायेगी, वह लुप्त हो जायेगी। वह एक इच्छा न होगी तब। अगर तुम उसमें उतरना
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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