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________________ दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सारे युद्ध अपराधियों ने सफाई में कहा कि वे जिम्मेदार नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने तो बस ऊपर से आज्ञा पायी थी और उन्होंने आदेशों का पालन किया था। वे समूह का हिस्सा मात्र थे। हिटलर और मुसोलिनी भी बड़े संवेदनशील आदमी थे अपने निजी जीवन में। हिटलर संगीत सुना करता था, उसे संगीत से प्रेम था। कई बार वह चित्र भी बनाया करता था, उसे चित्रकला से प्रेम था। हिटलर का चित्रकला और संगीत से प्रेम करना असंभव लगता है कि वह इतना संवेदनशील हो सकता था और तब भी वह लाखों यहूदियों को मार सकता था बिना किसी असुविधा के, अपने अंतःकरण को कोई कष्ट दिये बिना। एक चुभन भी नहीं! लेकिन वह जिम्मेदार न था, वह तो बस एक समूह का नेता था। जब तुम भीड़ में चल रहे होते हो, तब तुम कुछ भी कर सकते हो क्योंकि तुम अनुभव करते हो, जैसे कि भीड़ उसे कर रही है और तुम बस उसका हिस्सा हो। यदि तुम अकेले होते हो, तो तुम दो-तीन बार सोचोगे इस बारे में कि उसे करें या न करें। भीड़ में जिम्मेदारी खो जाती है; तुम्हारा वैयक्तिक सोचना-विचारना, तुम्हारा विवेक खो जाता है; तुम्हारी जागरूकता खो जाती है। तुम भीड़ का एक हिस्सा मात्र बन जाते हो। और भीड़ पागल हो सकती है। हर देश इसे जानता है। इतिहास का हर काल इसे जानता है। भीड पागल हो सकती है, और तब वह कछ भी कर सकती है। लेकिन यह कभी नहीं सुना गया है कि भीड़ बुद्धत्व को पा सकती है। चेतना की उच्चतर अवस्थाएं केवल व्यक्तियों द्वारा उपलब्ध की जा सकती हैं। ज्यादा जिम्मेदारी अनुभव करनी पड़ती है,ज्यादा वैयक्तिक जिम्मेदारी, ज्यादा विवेक। जितना अधिक तुम अनुभव करते हो, उतने तुम जिम्मेदार हो। और जितना अधिक तुम अनुभव करते हो कि तुम्हें जागरूक होना है, उतना अधिक तुम एक व्यक्ति बनते हो। बुद्ध ने महाकाश्यप को अपना मौन–अनुभव संप्रेषित किया था- उनकी मौन संबोधि, उनका मौन बुद्धत्व; क्योंकि महाकाश्यप भी शिखर बन चुके थे। एक ऊंचाई! और दो ऊंचाइयां अब मिल सकती थीं। और ऐसा हमेशा रहेगा। इसलिए यदि तम अधिक ऊंचे शिखरों तक पहंचना चाहते हो, तो समूहों की भाषा में मत सोचो। तुम्हारी अपनी निजता की भाषा में सोचो। समूह प्रारंभ में सहायक हो सकता है, लेकिन जितने ज्यादा तुम विकसित होते हो, उतना ही कम सहायक हो सकता है समूह। अंतत: एक बिंदु आ जाता है, जब समूह कोई सहायता नहीं दे सकता। तुम अकेले छोड़ दिये जाते हो। और जब तुम समग्र रूप से अकेले होते हो और तुम अपने अकेलेपन में विकसित होने लगते हो, तब पहली बार तुम अस्तित्ववान बनते हो। तुम एक आत्मा बनते हो, एक व्यक्तित्व। प्रश्न तीसरा:
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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