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________________ भी देश को प्रेम करता हूं यदि मैं इस सारी पृथ्वी को प्रेम करूं, तब मैं युद्ध में घसीटा नहीं जा सकता। राजनेता सिखायेंगे, 'इस देश को प्रेम करो। यह तुम्हारा देश है क्योंकि तुम यहां पैदा हुए हो। तुम इस देश के हो, तुम्हारा जीवन, तुम्हारी मृत्यु इस देश से संबंध रखती है।' तब वे इसके लिए तुम्हें बलिदान कर सकते हैं। सारा समाज तुम्हें संबंधों, आसक्तियों की शिक्षा दे रहा है, प्रेम की नहीं। प्रेम खतरनाक है क्योंकि यह किन्हीं सीमाओं को नहीं जानता। यह आगे बढ़ सकता है, यह स्वतंत्रता है। इसलिए एक पत्नी अपने पति को सिखायेगी, 'मुझे प्रेम करो क्योंकि मैं तुम्हारी पली हूं।'जबकि पति सिखा रहा है पत्नी को, 'मुझे प्रेम करो क्योंकि मैं तुम्हारा पति हूं।'कोई प्रेम नहीं सिखा रहा। यदि केवल प्रेम सिखाया जाता, तब पत्नी कह सकती थी कि दूसरा व्यक्ति ज्यादा प्रिय है। यदि वास्तव में संसार प्रेम करने के लिए स्वतंत्र होता, तब पति होना भर ही कोई अर्थ नहीं रख सकता, पत्नी होना मात्र कोई अर्थ न रखता। तब प्रेम मुक्त भाव से बहता है। लेकिन यह खतरनाक है। समाज इसे स्वीकार नहीं कर सकता, परिवार इसे नहीं मान सकता। धर्म इसकी अनुमति नहीं दे सकते। तो प्रेम के नाम पर वे मोह सिखाते हैं, और तब हर कोई दुख में पड़ जाता है। जब पतंजलि कहते हैं अनासक्ति, तो वे प्रेम-विरोधी नहीं हैं। वस्तुत: वे प्रेम के लिए कहते हैं। अनासक्ति का अर्थ है स्वाभाविक, प्रेममय, प्रवाहमान होना, लेकिन सम्मोहित और आसक्त मत हो जाओ। आसक्ति एक समस्या है। तब प्रेम एक रोग की भांति है। यदि तुम अपने बच्चे के अतिरिक्त किसी को प्रेम नहीं कर सकते, तो यह आसक्ति है। तब तुम दुख में पड़ोगे। तुम्हारा बच्चा मर सकता है, तब तुम्हारे प्रेम के प्रवाहित होने की कोर्ट संभावना नहीं है। और यदि तुम्हारा बच्चा नहीं भी मरे,तो वह बड़ा होगा और जितना ज्यादा वह बड़ा होता है उतना ज्यादा वह स्वतंत्र हो जायेगा। तब पीड़ा होगी। हर मां यही झेलती है, हर पिता यही भुगतता है। जब बच्चा वयस्क हो जाता है, तब वह किसी सी के प्रेम में पड़ जायेगा। तब मां कष्ट पाती है। एक प्रतिदवंदवी प्रविष्ट हो गया है। लेकिन वह पीड़ा मोह के कारण ही है। अगर मां ने -वास्तव में बच्चे को प्रेम किया होता, वह उसे स्वतंत्र होने में मदद करती। वह उसे संसार में घूमने में मदद देगी, जितने संभव हो उतने प्रेम-संपर्क बनाने में, क्योंकि वह जानेगी कि जितना ज्यादा तुम प्रेम करते हो, उतने ज्यादा तुम परितृप्त होते हो। जब उसका बच्चा किसी सी के प्रेम में पड़ता है, तो मां प्रसन्न होगी, वह आनंद से नाच उठेगी। प्रेम तुम्हें कभी दुख नहीं देता क्योंकि अगर तुम किसी को प्रेम करते हो, तुम उसकी प्रसन्नता को प्रेम करते हो। लेकिन यदि तुम किसी के प्रति आसक्त होते हो, तुम उसकी प्रसन्नता को प्रेम नहीं करते, तुम केवल अपने स्वार्थ के कारण प्रेम करते हो। तुम केवल अपनी अहं केंद्रित मांगों के साथ ही संबंध रखते हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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