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________________ स्वयं भीतर केंद्रस्थ हुए नहीं, अतः जो भी वे करते हैं, उससे दुख की मात्रा बढ़ती ही है केवल करुणा और केवल सेवा सहायक न हो सकेगी। आत्म-केंद्रित व्यक्ति से उठी करुणा की बात ही और है। भीड़ से उठी करुणा हानिकारक है, उपद्रव मचाने वाली है; वह तो जहर है। 'अब योग का अनुशासन।' अनुशासन का मतलब है होने की क्षमता जानने की क्षमता, सीखने की क्षमता। हमें ये तीनों बातें समझ लेनी चाहिए।' होने की क्षमता।' पतंजलि कहते हैं, यदि तुम अपना शरीर हिलाये बिना मौन रह कर कुछ घंटे बैठ सकते हो, तब तुम्हारे भीतर होने की क्षमता बढ़ रही है। तुम हिलते क्यों हो गुर कुछ पल भी तुम बिना हिले-डुले नहीं बैठ सकते। तुम्हारा शरीर सतत चंचल है। कहीं तुम्हें खुजलाहट होती है, टांगें सुन्न होने लगती हैं, बहुत कुछ होना शुरू हो जाता है। ये सब हिलने के बहाने हैं। तुम मालिक नहीं हो। शरीर से नहीं कह सकते कि' अब एक घंटे तक मैं नहीं हिलूंगा।' शरीर तो तत्काल विद्रोह कर देगा। उसी पल तुम्हें वह मजबूर करेगा हिलने के लिए कुछ करने के लिए। और वह तुम्हें कारण भी देगा कि तुम्हें हिलना ही है क्योंकि एक कीड़ा काट रहा है, वगैरहवगैरह ।' तुम उस कीड़े को जब देखने जाओ तो हो सकता है उसे ढूंढ भी न पाओ । तुम आत्मस्थ नहीं हो। तुम एक सतत कंपित ज्वरग्रस्त हलचल हो। पतंजलि के बताये आसन किसी शारीरिक प्रशिक्षण से खास संबंधित नहीं है, बल्कि वे एक आंतरिक प्रशिक्षण से संबंधित हैं कि बस होना, कि बिना कुछ किये बिना किसी गति के बिना किसी हलचल के बस, ठहर जाओ। यह ठहरना अंतस के केंद्रीयकरण में सहायक होगा। यदि तुम एक ही आसन में ठहर सकते हो तो शरीर गुलाम, सेवक बन जायेगा फिर वह तुम्हारा अनुगमन करेगा। शरीर जितना अधिक तुम्हारा अनुगमन करेगा, उतना ही अधिक शक्तिपूर्ण और विराट बनेगा तुम्हारे भीतर का अस्तित्व और इसे ध्यान में रखना कि तुम्हारे शरीर में गति नहीं होती तो तुम्हारा मन भी गतिमय नहीं हो सकता। क्योंकि शरीर और मन कोई अलग-अलग चीजें नहीं हैं। वे एक ही घटना के दो छोर हैं। तुम शरीर और मन नहीं हो, तुम हो शरीर-मन । तुम्हा व्यक्तित्व मनोशरीर है, साइकोसोमैटिक है, एक साथ शरीर और मन दोनों है। मन शरीर का सबसे सूक्ष्म हिस्सा है और तुम इससे विपरीत भी कह सकते हो : शरीर सबसे स्थूल हिस्सा है । का। इसलिए जो कुछ शरीर में घटित होता है वही मन में घटित होता है। और इसके विपरीत जो कुछ मन में घटित होता है वही शरीर में घटित होता है। यदि शरीर में कोई गति नहीं हो रही और तुम एक ही आसन में स्थिर रह सकते हो, यदि तुम शरीर को खामोश रहने के लिए कह सकते हो तो मन भी खामोश बना रहेगा। वास्तव में मन गतिमय बनता है तो शरीर में भी गति लाने की
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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