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________________ अनुशासन क्या है? अनुशासन का अर्थ है अपने भीतर एक व्यवस्था निर्मित करना। जैसे तुम हो, तुम एक अराजकता हो। जैसे कि तुम हो, पूरी तरह अव्यवस्थित–से हो-गुरजिएफ कहा करते थे। और गुरजिएफ की बहुत-सी बातें पतंजलि की भांति हैं। उन्होंने भी धर्म के मर्म को विज्ञान बनाने का प्रयास किया। गुरजिएफ कहा करते थे तुम एक नहीं हो, तुम भीड़ हो। जब तुम कहते हो 'मैं', तो कोई मैं होता नहीं। तुम्हारे भीतर अनेक 'मैं' अनेक अहं हैं। सुबह कोई एक 'मैं' है, दोपहर कोई और 'मैं' है और शाम कोई तीसरा ही 'मैं' होता है। लेकिन इस गड़बड़ी के प्रति तुम कभी सचेत भी नहीं होते। क्योंकि सचेत होगा भी कौन? कोई अंतस केंद्र ही नहीं है, जिसे इसका बोध हो पाये। 'योग अनुशासन है' इसका अर्थ है कि योग तुम्हारे भीतर एक क्रिस्टलाइज्ड सेंटर का, एकजुट केंद्र का निर्माण करना चाहता है। तुम तो जो हो, एक भीड़ हो। और भीड़ के बहुत से गुण होते हैं। एक तो यह कि भीड़ पर कोई विश्वास नहीं कर सकता। गुरजिएफ कहते थे कि आदमी वादा नहीं कर सकता। वादा करेगा भी कौन? तुम तो वहां होते ही नहीं और तुम वादा करते हो उसे पूरा कौन करेगा? अगली सुबह वह तो रहा ही नहीं जिसने वादा किया था! मेरे पास लोग आते हैं और कहते हैं, 'अब मैं व्रत लूंगा।' वे कहते हैं, 'अब मैं यह करने की प्रतिज्ञा करता हूं? 'मैं उनसे कहता हूं 'इससे पहले कि तुम कोई प्रतिज्ञा लो, दो बार फिर सोच लो। क्या तुम्हें पूरा आश्वासन है कि जिसने वादा किया है वह अगले क्षण बना भी रहेगा?'तुम कल से सुबह जल्दी चार बजे उठने का निर्णय लेते हो। और चार बजे तुम्हारे भीतर कोई कहता है, 'झंझट मत लो। बाहर इतनी सर्दी पड़ रही है! और ऐसी जल्दी भी क्या है? मैं यह कल भी कर सकता है।' और तुम फिर सो जाते हो। __जब सुबह उठते हो तो पछताते हो। सोचते हो कि यह अच्छा नहीं हुआ; तुम्हें जल्दी ही उठ जाना चाहिए था। तुम फिर निर्णय लेते हो कि कल तुम चार बजे ही उठोगे। लेकिन कल भी यही कुछ होने वाला है क्योंकि जिसने प्रतिज्ञा की वह सुबह चार बजे वहां होता नहीं, कोई दूसरा ही उसकी जगह आ बैठता है। तुम रोटरी क्लब की भांति हो। चेयरमैन निरंतर बदलता रहता है। तुम्हारा हर हिस्सा रोटरी चेयरमैन बन जाता है। यह चक्र चल रहा है, हर घडी कोई और ही प्रधान बन जाता है। गुरजिएफ कहा करते थे कि मनुष्य का प्रमुख अभिलक्षण यही है कि वह प्रतिज्ञा नहीं कर सकता। तुम वचन पूरा नहीं कर सकते। वचनबद्ध हुए चले जाते हो, और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वचनों को पूरा नहीं कर पाओगे। क्योंकि तुम एक नहीं हो, तुम एक अव्यवस्था हो, एक अराजकता हो। इसलिए पतंजलि कहते है, 'अब योग का अनुशासन।' यदि तुम्हारा जीवन एक परम दुःख बन चुका है, यदि अनुभव करते हो कि तुम जो भी करते हो उससे नर्क ही बनता है, तब वह क्षण आ गया है। यह क्षण तुम्हारी हस्ती के, तुम्हारे अस्तित्व के आयाम को बदल सकता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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