SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से और सहानुभूति से अपने पडोसी की जीवन-पुस्तक पढ़ेगा और उसमे पडे धब्बे अपने हाथ से मिटायेगा-में आपकी पुस्तक सुधारूंगा, आप मेरी । यही मनुष्य की जीवनदायिनी शक्ति है-आपकी राह के काटे मैं बीनं और आप मेरी राह के कांटे बौनें । कोटे छिपा देने से राह नही सुधरती । आज तो मनुष्य का जीवन भीतर से बेशुमार काटो से घिर गया है। बाहर उसने खूब फूल उगाये हैं-चमकदार, रग-बिरगे, मनमोहक आवरण, पर जीवन भीतर से सूख रहा है और प्यार उसमे खो गया है। मनुष्य की खुद की एक महक है जो मर रही है। अपनी-अपनी जीवन-पुस्तक खोलिए उसे खिलने का मौका दीजिए, पुस्तक की महक फिर महकने लगेगी। ०० महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy