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________________ ग्लास-भीतर क्या हो चुका है या होने जा रहा है सब छिप जाता है। जीवन पुस्तक पर समय-समय चढने वाले आवरणो की यही खूबी है । वे अपने उन रमो को चमका रहे हैं जिन्हें चमकाने की जरूरत ही नहीं है और उन धब्बो को छिपा रहे है जिन्हें धोकर मिटाने की जरूरत है। मनुष्य की महक पर जरा सोचिये, यह कोई अधिक लम्बी दूरी तक साथ देने वाला मार्ग है ? हो सकता है आपकी-हमारी जिन्दगी तक मनुष्य इसी राह पर चलता रहे । कई पीढियो से चलता आ रहा है तो और भी कई पीढिया इसी रास्ते से गुजर जायेंगी। पर कभी आप जब चितन के मूड मे हो तो आपको ऐसा नहीं लगता कि हमारे ये आवरण जो ढेर-के-ढेर हरेक के पास है स्वय अपने ही बोझ से नष्ट हो जायेगे और यकायक मनुष्य की जीवनपुस्तक निरावरण हो जाएगी? दीवारों पर पुतने वाली चूने की कलाई एक लम्बे समय के बाद अपने ही बोझ से परतों के रूप में खिरने लगती है। मनुष्य को आज नहीं तो कल अपनी जीवन-पुस्तक खुली करनी होगी। यह बात उसे बहुत पहले समझ मे आ गयी थी और इस जीवन सत्य को उसने अपने नीति-वचनो मे जोड लिया था कि-'जीवन एक खुली पुस्तक हो' । कोई-कोई गर्व से कह भी बैठता है कि "माइ लाइफ इज एन ओपन बुक-मेरा जीवन एक खुली पुस्तक है ।" पुस्तक खुलेगी नही तो माजी कैसे जाएगी? सँवारी कैसे जाएगी? उसके सफे सुधारे कैसे जाएँगे? गलत कारनामे खारिज कैसे होगे ? अच्छे कारनामो के नये सफे जुडेगे कैसे ? जीवन कोई कागद तो नहीं है कि नही लिखा जाए तो कोरा ही रह जाए। आप कुछ लिखें या न लिखे, जीवन अपनी हरकते रोज अपने रोजनामचे मे दर्ज कर रहा है। आवरणो की क्या हस्ती कि वे जीवन का रोजनामचा कायम के लिए छिपा ले जाएँ । आवरण टूटेंगे और जरूर टूटेगे। मनुष्य के हाथ ऐसा युग लगेगा जब वह बहुत प्यार से, विश्वास जीवन में?
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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