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________________ कर मंदिर में पहुंचता है कि, 'प्रभु बचाओ, मेरी भव-बाधा हरो ।' कब बचना है तो आपको खुद बचना है। जीवन जी-जी कर बचना है । जी जहां है, जिन लोगों के बीच है, जिन परिस्थितियों में है उसी में समस होकर उसे विवेक-पूर्वक जीवन जीना है, तभी मुक्ति की साधना होगी। जीवन से कतराकर आप निकल जाएँ, तब भी बात नहीं बनेगी और जीवन से अपना स्वार्थ साधे तब भी बात नहीं बनेगी। शुद्ध, सही, निस्पृह जीवन जीयेंगे तो मुक्ति हाथ लगेगी। यही सम्यक्त्व है। मुक्ति मार्ग आत्मजयी महावीर अपने बन्द कपाट खोलते-बोलते मनुष्य का यह आत्मधर्म समझ गये थे। उन्होने सम्पूर्ण जीवन को मुक्ति से जोडा । वे कहते हैं - 'विवेक से चलो, विवेक से खडे होओ, विवेक से उठो, विवेक से सोओ, विवेक से खाओ, विवेक से बोलो, तो फिर मनुष्य बने रहने मे कोई कोर-कसर नही ।' 'इन पाच कारणो से मनुष्य सच्ची शिक्षा प्राप्त नही करपाताअभिमान, क्रोध, प्रमाद, अस्वास्थ्य और आलस्य । क्रोध को अक्रोध से, अभिमान को नम्रता से, कपट को सरलता से और लोभ को सतोष से जीतना चाहिए।' 'श्रेष्ठ जीवन की पाच माताएँ हैं-अप्रमत्त चल, सयत बोल, निर्दोष खा, सावधान रह, निर्मल बन ।' 'मोह-माया को कृश करे, केवल शरीर को कृश करने से कुछ नहीं होगा।' 'आत्मा इसी शरीर में उपलब्ध है, उसका अन्वेषण कर, अन्यत्र क्यो दौडता है" जीवन में?
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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