SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा और सह-अस्तित्व घायल सिंह-शावक कराहते हुए उछला और धरती-मा की गोद मे गिर पडा। धरती ने पूछा-क्या हुआ बेटे ।' रोते-रोते शावक बोला'मा । वह जो तेरा दो पावो पर खड़े-खडे चलने वाला प्राणी है न । उसने मुझे मारा, मम्मी को भी मारा।' इससे अधिक वह कुछ नहीं कह पाया और पास ही पड़ी मृत सिंहनी की तरह उसने भी गर्दन डाल दी। धरती विह्वल है। वह देख रही है कि मनुष्य का उन्माद बढ़ता जा रहा है। शिकार तो उसका बहुत मामूली खेल है, गोली से कितने जानवर मरेगे लेकिन अपने बेहतरीन जीवन-स्तर के लिए उसने जिन उपकरणो की खोज की है, जिस तकनीक का सहारा लिया है, रत्नगर्भा के सारे रत्न खोद लाया है और अपनी सुख-सुविधा के लिए जिस यंत्रीकरण में लगा है उससे पूरी सृष्टि का सतुलन बिगड गया है। कीटनाशी दवाइयो (इनसेफ्टीसाइड्स) के कारण पृथ्वी का कलेवर विषाक्त है, कारखानों के उगलते धुएं ने वायुमण्डल को प्रदूषित किया है, दूर-दूर तक झीलो मे १२१
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy