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________________ आखो से दिखायी देने वाले हथियार तो मनुष्य ने छोड दिये हैं और छोडता जा रहा है। लाठी, छुरी, चाकू, पिस्तौल आदि 'हत्यारों' की झोली मे 'पहुच गये हैं । सभ्य मनुष्य उन्हें छूता भी नहीं । यहा तक कि हाथापाई भी उसे पसन्द नही है । हिंसा के ये बाहरी उपकरण त्याग कर वह अहिंसा का राही बना है । राष्ट्रो ने भी अपने आपसी व्यवहार में बातचीत, मित्रता, सधि और सह-अस्तित्व की पहल शुरू की है । शस्त्रों से सजी-धजी फौजे और आयुधो का एक महाभण्डार सबके पास है, पर पहला कदम बातचीत काही उठता है । इस तरह मनुष्य ने अपने सामाजिक जीवन मे भी राह अहिसा की ही पकड़ी है, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में हिसा के जिन उपकरणो से उसने निजात पायी और सामाजिक जीवन मे जिस 'वैपनलेस सोसायटी - शस्त्रहीन समाज' की उसे चाह है, वह उसके हाथ गदयो नही रहा है ? क्या आप ऐसा महसूस नहीं करते कि मनुष्य ने अपनी झोली से हिंसा के जिन उपकरणो को फेंक दिया है, वे निराकार हो कर उसकी रूह प्रवेश कर गये हैं ? बाहर से वह खाली हाथ है। उसकी कमर पर अब कोई तलवार लटकती नही दिखायी देती । और न ही हमारे राष्ट्राध्यक्षो के हाथो मे धनुष-बाण है और पीठ पर तरकस । वे भी खाल। हाथ ही चलफिर रहे है, लेकिन हिमा को उभारने वाले अति सूक्ष्म उपकरणों से हमारा दिल और दिमाग घिर गया है । हम असहिष्णु हो गये है । बात की बात मे गुम्सा उतर कर नाक पर आ जाता है । अपनी नहीं चली तो भोहे तन जाती है । हम बहुत 'लाइस और डिस- लाइन्स - पसन्दगी और नापसन्दगी' वाले हो गये है । 1 आप मेरे साथ है तो अच्छे आदमी है । मुझसे भिन्न विचार रखते है तो बहुत बुरे आदमी हे । आपके देखने-समझने का नज़रिया झूट | सत्य वही जो मैंने देखा है, मैंने जाना है । आपके गुण मेरी श्रद्धा नही उभारते, ईर्ष्या बढाते है । जापकी सेवा के मुये स्वार्थ की गन्ध आ रहीं है । आप सहज हँस रहे है, मैं उसमे चालाकी के दर्शन कर रहा हूँ। और कुछ ऐसा ही महावीर ११०
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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