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________________ भिक्षुओ, भिक्षु जिह्वा को समझता है, रस को सनझता है और जिह्वा तथा रस के हेतु से जो मयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है। सयोजन की उत्पत्ति कैसे होती है-यह समझता है। उत्पन्न सयोजन का कैमे नाश होता है- यह समझता है। नप्ट सयोजन फिर कैसे उत्पन्न नही होता है-यह समझता है। भिक्षुओ, भिक्षु काय को समझता है, स्पर्गतव्य को समझता है, और काय तथा स्पर्शतव्य के हेतु से जो सयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है। सयोजन की उत्पत्ति केसे होती है-यह समझता है। उत्पन्न सयोजन का कैसे नाग होता है-यह समझता है। नप्ट सयोजन फिर कैसे उत्पन्न नहीं होता है-यह समझता है। भिक्षुओ, भिक्षु मन को रामझता है, मन के विपयो (धर्मो)को समझता है और मन तया धर्मों के हेतु से जो सयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है। सयोजन की उत्पत्ति कैसे होती है-यह समझता है। उत्पन्न सयोजन का कैसे नाग होता है-यह समझता है। नप्ट सयोजन फिर कैसे उत्पन्न नहीं होता-यह समझता है। और फिर भिक्षुओ, भिक्षु सात बोधि-अङ्ग धर्मो मे धर्मानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षुओ, भिक्षु स्मृति सम्बोधि-अङ्ग, धर्म-विचय सम्बोधि-अङ्ग, वीर्य-सम्बोधि-अङ्ग, प्रीति-सम्बोधि-अङ्ग, प्रश्रधि सम्बोधि-अङ्ग, तथा उपेक्षा सम्बोधि-अङ्ग, इन सब के विद्यमान रहने पर विद्यमान है' जानता है, विद्यमान नहीं रहने पर 'विद्यमान नहीं है' जानता है। इन सब की उत्पत्ति कैसे होती है-यह जानता है। उत्पन्न सम्बोधि-अङ्गो की भावना कैसे पूरी होती है-यह जानता है। और फिर भिक्षुओ, भिक्षु, चार आर्य-सत्य धर्मों मे धर्मानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षुओ, भिक्षु 'यह दुख है'- इसे यथार्थ रूप से जानता है। यह
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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