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________________ - ४५ - होता है-यह जानता है । नष्ट सगय फिर कैसे नही उत्पन्न होता है यह जानता है। ___ और फिर भिक्षुओ, भिक्षु पाँच उपादान-स्कन्ध धर्मों मे धर्मानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षु चिन्तन करता है-“यह रूप है, यह स्प का समुदय है, यह रूप का अस्त होना है, यह वेदना है, यह वेदना का समुदय है, यह वेदना का अस्त होना है, यह सझा है, यह सझा का समुदय है, यह सजा का अस्त होना है, यह सस्कार है, यह सस्कारो का समुदय है, यह सस्कारो का अस्त होना है, यह विज्ञान है, यह विज्ञान का समुदय है, यह विज्ञान का अस्त होना है।" ओर फिर भिक्षुओ, भिक्षु छ अन्दरूनी-बाहरी आयतनो मे धर्मानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षुओ, भिक्षु ऑख को समझता है, रूप को समझता है और ऑख तथा रूप के हेतु से जोसयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है । सयोजन की उत्पत्ति कैसे होती है-यह जानता है। उत्पन्न सयोजन का कैसे नाश होता है-यह जानता है। नप्ट सयोजन फिर कैसे नही उत्पन्न होता है-यह जानता है। भिक्षुओ, भिक्ष श्रोत्र को समझता है, शब्द को समझता है और श्रोत्र तथा शब्द के हेतु से जो सयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है। सयोजन की उत्पत्ति कैसे होती है-यह समझता है। उत्पन्न सयोजन का कैसे नाश होता है-यह समझता है। नप्ट सयोजन फिर कैसे नही उत्पन्न होता है-यह समझता है। भिक्षुओ, भिक्षु घ्राण को समझता है, गन्ध को समझता है और प्राण तथा गन्ध के हेतु से जो सयोजन उत्पन्न होता है, उसे समझता है। सयोजन की उत्पत्ति कैसे होती है-यह समझता है। उत्पन्न सयोजन का कैसे नाश होता है-यह समझता है। नष्ट सयोजन फिर कैसे नही उत्पन्न होता है-यह समझता है।
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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